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गीता दर्शन और स्वतंत्र भारत

आचार्य जी को महामना मालवीय मिशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ‘श्रीमद्भगवद्गीता दर्शन और आत्मनिर्भर भारत’ विषय पर अपने विचार रखने के लिए कहा गया। आचार्य जी उस समय ऋषिकेश में आयोजित शिविर के लिए निकल चुके थे और उन्होंने अपने संदेश को पहुँचाने के लिए किसी जगह पर रुककर रिकॉर्डिंग करवाकर भेजी, वही विचार बाद में कार्यक्रम में टेलीकास्ट हुए।

आचार्य प्रशांत: बहुत आश्रित है अर्जुन परायों पर; जो उसके संस्कार हैं, जो उसके नात-रिश्तेदार हैं और ये सब तो फिर भी बाहरी उल-जलूल परायों की बात कर रहे हैं। उसके भीतर उसका जन्मजात चित्त बैठा है, पैदाइशी वृतियाँ बैठी हैं और ये सब पराए ही होते हैं। जब हम वेदांत की, अध्यात्म की बात करते हैं तो आत्मा के अलावा सब कुछ पराया है और अर्जुन इन परायों की ही सुने जा रहा है कुरुश्रेष्ठ के मैदान पर।

तो मुझे कहा गया है कि मैं ‘गीता दर्शन और आत्मनिर्भर भारत’ विषय पर कुछ बोलूँ। गीता दर्शन पूरा है ही इस बात पर कि जानों तुम कि तुम कौन हो और तुमसे इतर माने तुमसे पराया कौन है।

अर्जुन जो भूल कर रहा है वो हम सभी करते हैं। वो भूल है परायों को अपना मान लेना, परायों को अपना ही नहीं मान लेना परायों को आत्मा मान लेना, परायों को स्वयं का ही नाम दे देना, अपनी ही पहचान को स्वयं से विस्थापित कर देना। जो तुम हो नहीं उसको खुद को मानना शुरू कर देना। ये भूल हम सब करते हैं। कुरुक्षेत्र में यही भूल अर्जुन कर रहा है और कृष्ण समझा रहे हैं और कृष्ण ने जो समझाया है अर्जुन को वही गीता ज्ञान है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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