गिरते हुए समाज में मेरे लिए उचित कर्म क्या?

समाज या दुनिया क्या है? हम हैं, आप हैं, जैसे हम हैं, आप हैं, वैसा ही संसार है। वैसा ही। अगर आप समाज को और संसार को गिरता हुआ पाते हैं, तो उसका कारण यही है कि इंसान गिर रहा है, हम और आप गिर रहे हैं । ऐसा तो नहीं हो सकता कि इंसान उठा हुआ रहे, और समाज पतित रहे। उर्ध्गामी है अगर मनुष्य, तो अधोगामी तो नहीं हो सकता ना, मनुष्य का समाज।

और जब समाज गिर रहा होता है, तो उसका अपना एक वेग होता है । गिरता हुआ समाज औरों को और गिराता है। अपने साथ गिराता है। गिरते हुए समाज के मध्य में अगर आप बैठे हैं तो आपका धर्म है कि अपने आस पास गिरती हुई चीज़ों और इंसानो और व्यवस्थाओं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant