गालियों के पीछे का मनोविज्ञान समझते हो?

प्रश्नकर्ता: पिछले दिनों गालियों को लेकर आपका एक वीडियो आया, मैं बात की और ज़्यादा गहराई में जाना चाहता हूँ, मुझे बताइए गालियों के पीछे का मनोविज्ञान क्या है?

आचार्य प्रशांत: जो बात बिलकुल सीधी है उसी से शुरू करो — तुम गाली किसी को आहत करने के लिए ही देते हो न? तुम्हें किसी को चोट पहुँचानी है, तुम चाहते हो किसी को ज़रा दर्द हो तो तुम उसे गाली देते हो। तो यही मनोविज्ञान है, गाली दे दो।

मैं किसी कारण से तुमसे चोट पा रहा हूँ तो मैं तुमको चोट पहुँचाना चाहता हूँ और इसमें अगर गहरे प्रवेश करोगे तो मैं कहूँगा कि दूसरे को सबसे ज़्यादा चोट वहाँ लगती है जहाँ दूसरे का हृदय होता है।

शरीर में भी कोई तुम्हारे हाथ में गोली मार दे, पाँव में गोली मार दे तुम बच जाते हो। तुम्हारे कंधे पर कोई गोली मार दे तो भी बच जाते हो पर कोई तुम्हारी गर्दन में मार दे, या छाती में मार दे, या बिलकुल मस्तिष्क में मार दे तो नहीं बचोगे न? किसी को चोट पहुँचानी हो तो उसके मर्म-स्थल पर मारना होता है, मर्म-स्थल। उस जगह पर मारो जो उस व्यक्ति के लिए सबसे केंद्रीय जगह है, जहाँ हृदय है उसका। जिस चीज़ को वह पवित्र समझता हो, सेक्रेड (पवित्र) समझता हो वहाँ आघात करो। वही चीज़ गाली कहलाती है। यह गाली की फिर एक ज़्यादा व्यापक परिभाषा हुई। किसी व्यक्ति के मर्म पर, हृदय पर आघात करना गाली है और गाली फिर आवश्यक नहीं कि कोई शब्द ही हो। वह कोई कर्म भी हो सकती है।

गाली के बारे में जो एक केंद्रीय बात है वह यह है कि वह सेक्रेडनेस को, पवित्रता को नहीं मानती। वह कहती है, "कुछ है ही नहीं पवित्र, जो तुझे पवित्र लगता है मैं उसे अपवित्र कर दूँगा।" अब ज़्यादातर लोगों की ज़िंदगी में वह चीज़ जिसको वह कभी अपवित्र होना देखना नहीं चाहते वह होती हैं…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org