[गाँधी जयंती विशेष] मत मानों उनके आदर्शों को, लेकिन उनको एक बार ठीक से पढ़ लो!

[गाँधी जयंती विशेष] मत मानों उनके आदर्शों को, लेकिन उनको एक बार ठीक से पढ़ लो

मैनचेस्टर से जाकर पूछो कि गांधी का वहां क्या नाम था और क्या छवि थी। गांधी कहते थे कि यह सब व्यापारी हैं, सभी पैसे के भूखे हैं। इन्हें भारत से जो पैसा मिल रहा है, भारत को लूट-लूट कर के लंदन मोटा रहा है। मैं भारत की लूट रुकवाऊंगा। और उस लूट को रुकवाने के लिए ही उन्होंने यह सब रास्ते चुने, चाहे खादी हो या नमक सत्याग्रह हो।

एक साधारण व्यक्ति जो पहले दक्षिण अफ्रीका जाता है, और वहां कुछ बातें समझता है, सीखता है। तमाम उसकी सीमाएं और कोई बहुत नैसर्गिक प्रतिभा का धनी नहीं था। अधिकारियों के सामने खड़े हो जाते तो अपनी बात रखना मुश्किल हो जाता था। खुद ही बोलते हैं कि आवाज नहीं निकलती थी, आत्मविश्वास की इतनी कमी थी, ऐसा व्यक्तित्व था गांधी का। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में देखा कि कुछ अन्याय हो रहा है तो उसके खिलाफ खड़े हो गए। उनकी प्रैक्टिस अच्छी चल रही थी और फिर विदेश में ही उनका व्यवसाय भी काफी अच्छा चलने लगा, लोगों से सम्मान भी मिलने लगा।

इतना सब हासिल करने के बावजूद भी वे भारत लौट आते हैं और पहले कुछ साल बस चुपचाप समझने की कोशिश करते हैं कि यहां हो क्या रहा है और जब समझते हैं क्या हो रहा है, तो कहते हैं कि मैं अपना ये सूट, कोट पैंट पहन कर इन लोगों के पास जाऊं कैसे? बोले अब इनके पास अगर जाना ही है तो इन्हीं के जैसा हो कर जाऊंगा, दरिद्रनाथ की सेवा में लगना है तो कैसे मैं उसके सामने अंग्रेज बन के खड़ा हो जाऊं। ऐसे इंसान थे वे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org