गलत निर्णयों का कारण क्या? ग्रंथों का दुरुपयोग कैसे?

प्रश्न: आचार्य जी, प्रणाम!

आपसे प्रश्न पूछा गया था कि — “मुक्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा क्या है?” तो आपने कहा था कि — “मुक्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हम स्वयं ही हैं, क्योंकि हम ही ने बंधनों का चुनाव कर रखा है।” मगर आचार्य जी, इन बंधनों के चुनाव के पीछे कोई-न-कोई कारण तो है ही, चाहे वो सही हो या गलत हो, लेकिन कारण है तो।

कर्म करते हुए हम कैसे खुद को इस गलत चुनाव से बचाएँ? कृपया सांसारिक जीवन की व्यवहारिकता को ध्यान में रखते हुए मार्गदर्शन करने की कृपा करें ।

आचार्य प्रशांत: तो सुनील (प्रश्नकर्ता) मुझे पहले ही चेतावनी दे रहे हैं कि — “कोई अव्यवहारिक उत्तर मत दे दीजिएगा आचार्य जी। सांसारिक लोगों के लिए कोई व्यावहारिक बात बताईए।” क्या व्यवहारिक बात बताऊँ? तुम कह रहे हो कि — “बंधन चुने गए हैं, तो उनके पीछे कोई कारण है। कारण चाहे सही हो, चाहे गलत हो, कारण तो है।”

अरे भाई, तुम कभी किसी गलत रास्ते भी चल देते होगे, कहीं जाना है पर रास्ता गलत चुन लिया। एक बार समझ में आ गया कि रास्ता गलत चुन लिया, तो ये थोड़े ही कहोगे कि -“गलत रास्ते पर हम आए, तो कोई कारण तो होगा। भले ही हमें भ्रम हुआ, तो भ्रम होने के पीछे भी तो कोई वजह तो होगी। हमें नशा भी हुआ, तो नशे का भी कुछ सबब तो होगा।”

इतनी बातें करते हो क्या? या सीधे ये कहते हो कि — “रास्ता गलत है, समझ में आ गया। चुपचाप मुड़ जाओ, सही रास्ता पकड़ो।” या बैठकर ये विश्लेषण करोगे कि — गलती के पीछे प्रयोजन क्या था? कोई

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org