खोजना है खोना, ठहरना है पाना

हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ।

-( श्री गुरु ग्रंथ साहिब)

अनुवाद : प्रभु हैं मेरा धन; मेरा मन है व्यापारी

वक्ता: हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ।

बहुत सुन्दर पद है, समझेंगे। तीन हिस्से कर लीजिये।

१. हरि रासि मेरी

२. मनु वणजारा

३. सतिगुर ते रासि जाणी

तीन ही हैं, और तीन ही सदा हैं। संसार, सत्य और सम्बन्ध। संसार, सत्य और उनके बीच का सम्बन्ध या सीढ़ी। तीन ही हैं। तीन का ये जो आंकड़ा है, ये बहुत महत्वपूर्ण है। संसार, सत्य और सीढ़ी।

हरि रासि- सत्य।

मनु वणजारा- संसार।

सतिगुर ते रासि जाणी- सीढ़ी।

हरि सत्य है, मन संसार है, और गुरु वो सम्बन्ध है, वो सीढ़ी है, जो संसार और सत्य को एक कर देता है, जोड़ देता है।

प्रश्न है कि मन को वणजारा क्यों कहा?

दो कारण हैं, जिसने दोनों कारण समझ लिये वो मन की प्रकृति को बिल्कुल जान गया।

हरि रासि, ‘रासि’ माने धन। मन बंजारा है। बंजारे से दो आशय हैं। पहला- जो भटक रहा है। दूसरा- जो व्यापार कर रहा है। मन इन दो के अलावा कुछ करता ही नहीं। वो किसी राशि को तलाश रहा है। हरि वो राशि है, उसी की तलाश में वो दर-ब-दर भटक रहा है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org