खाने और गाने में बड़ा गहरा संबंध है।

किसी भी फूहड़ जगह पर ये दोनों चीज़ें तुम एक साथ पाओगे, मसालेदार खाना और मसालेदार गाना।

और वो गाना ज़रूरी है, उससे भोजन में ज़ायक़ा बढ़ता है, मसाला बढ़ता है।

तुम्हें क्या लगता है, तुम सिर्फ़ ज़बान से मसाला ग्रहण करते हो?

न, कानों को भी मसाले की बहुत लत होती है!

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org