खाने और कपड़ों के प्रति आकर्षण
प्रश्न:
कबिरा यह मन लालची, समझे नहीं गंवार।
भजन करन को आलसी, खाने को तैयार।।
~ गुरु कबीर
आचार्य जी, मेरा मन तो खाने के साथ-साथ वस्त्रों आदि की ओर भी बहुत आकर्षित रहता है। वस्त्र खरीदती भी बहुत हूँ, पर कभी तृप्त नहीं होती। कृपया मार्गदर्शन करें।
आचार्य प्रशांत: शरीर भी संसाधन है, धन भी संसाधन है, समय भी संसाधन है, वस्त्र भी संसाधन हैं। भोजन भी संसाधन है। ‘संसाधन’ माने — वो जिसका उपयोग किया जाये। किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आप जिसका उपयोग कर सको, वो ‘संसाधन’ है।
आपने इन्हीं तीन-चार चीज़ों की बात की है। भोजन — संसाधन है न, जिससे ऊर्जा मिलती है। वस्त्र खरीदती हैं, तो धन से खरीदती होंगी। तो वस्त्र क्या है? संसाधन। कपड़ा भी संसाधन है। उसको पहन करके, किसी काम के लिये तैयार हो पाते हो। समय भी संसाधन है, चाहे खाने-पीने की तैयारी करो, और चाहे कपड़ों की ख़रीददारी करो, समय तो उसमें लगता है।
तो सीमा जी (प्रश्नकर्ता), प्रश्न यह है कि — इन संसाधनों का प्रयोग, किसकी सेवा में कर रही हैं? इन संसाधनों का प्रयोग, किसकी सेवा में कर रहीं हैं? संसाधन लग रहे हैं, ये बात अधूरी है। प्रश्न ये है कि — किसके लिये लग रहे हैं? गौर करियेगा।
सब धरती कागज़ करूँ, लेखनी सब बनराये ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाये ।।
~ गुरु कबीर