क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ क्या हैं? सृजनात्मकता का वास्तविक अर्थ क्या है?
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।।
कार्य और कारण को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा सुख-दु:ख के भोक्तापन में अर्थात् भोगने में हेतु कहा जाता है।
—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १३, श्लोक २१
उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः।।