क्रोध या बेईमानी?

आचार्य प्रशांत: अहंकार कहता है कि मैं जैसा हूँ, वैसा होते हुए मुझमें ये पात्रता है कि जो मैं चाह रहा हूँ, वो मुझे मिल जाए। अहंकार में इतनी समझ और इतना लचीलापन नहीं होता कि उसे दिखाई दे कि वो बित्ता भर का नहीं है, और मांग रहा है असीम को। तो, उसको बुरा लगता है जब नहीं मिलता। उसको ये लगता है कि मेरी तो योग्यता थी, मेरी तो पात्रता थी, मेरा हक़ था, और मुझे मिला नहीं। और जब ये लगता है कि मेरा हक़ था और मुझे मिला नहीं, तो गुस्सा आता है।

आदमी के तेवर विद्रोही जैसे हो जाते हैं, क्योंकि आदमी कहता है कि मुझे वो चीज़ नहीं मिली जो हक़ था मेरा, अधिकार था मेरा। फिर गुस्सा आता है। गुस्सा अहंकार को तभी आता है, जब उसे अपनी हैसियत का एहसास नहीं रहता। कटोरा समुन्दर मांगने निकला है, और समुन्दर समा नहीं रहा तो गुस्सा आ रहा है।

और गुस्साए जा रहा है, क्योंकि समुन्द्र घुस ही नहीं रहा है कटोरे में।

कहानी इस बारे में है, कि जब उस युवा संन्यासी को बताया गया कि जो ये पेड़ पर इतने पत्ते हैं, इतने जनम लगेंगे; तो उसने उसको ये नहीं कहा कि इतने जन्म लगेंगे, उसने उसको कहा कि क्या मात्र इतने ही जन्म लगेंगे? “अरे! मैं जैसा हूँ, इतना सा, तो मुझे अगर इतने ही जन्म लग रहे हों, तो बड़े कम हैं।” ऐसी सी बात है कि एक की संख्या को एक करोड़ तक पहुँचना है, तो उसे कितने फेरे लगाने पड़ेंगे अपने? एक करोड़। उसको पता है कि मैं जितना छोटा हूँ, अगर मुझे करोड़ तक पहुँचना है तो मुझे अपने ही एक करोड़ फेरे लगाने पड़ेंगे। एक से दो होऊँगा, दो से तीन होऊँगा, तीन से चार होऊँगा, तब पहुँचूंगा?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org