क्रोध पर कैसे काबू पाएँ?

क्रोध की घटना यूँ ही नहीं होती उसके पीछे एक सुबकता हुआ, सुलगता हुआ जीवन होता है। एक ऐसा जीवन होता है जिसकी कामनाएँ पूरी नहीं हो पा रही हैं, चिढ़ा हुआ है, फिर वो बीच-बीच में अनुकूल मौका पाकर के फटा करता है। जहाँ पाता है कि सामने कोई ऐसा है जिसपर फ़टा जा सकता है, वो फ़ट जाता है।

जो कोई क्रोध में दिखे समझ लीजिएगा जीवन नारकीय जी रहा है, नहीं तो क्रोध कहाँ से आता?

क्रोध को किसी समय प्रकट करने वाली घटना, हो सकता है बहुत छोटी-सी हो, पर उसके पीछे एक ज़िन्दगी है जिसमें इच्छाएँ बहुत हैं और पूर्णताएँ बहुत कम। कामना ही जब पूरी नहीं होती, तो क्रोध बन जाती है। क्रोध उठ नहीं सकता, जब तक अपूरित कामनाएँ न हों।

और कामना क्यों करते हो?

कामना इसलिए करते हो कि कुछ चाहिए। चाहना बुरा नहीं है! जैसा चाह रहे हो, वैसा ही मिलेगा। जिस दिशा चल कर के चाह रहे हो, उस दिशा नहीं मिलता। जब नहीं मिलता तो चिढ़चिढ़ाते हो। जब नहीं मिलता तो जो ऊर्जा कामना में लगी हुई थी वही ऊर्जा क्रोध बनकर विस्फ़ोट करती है। तो चाहना बड़ी ज़िम्मेदारी का काम है, यूँ ही नहीं चाह लिया करो चाह-चाह के ही अपनी हालत इतनी खराब करी है।

ऊपर वाले ने श्राप नहीं दिया है कि जीवन खराब रहेगा, ये हमने चाहा है। ध्यान से देखना! आज जिन्हें तुम कहते हो “ये हमारे जीवन का नर्क हैं” वो सब कभी तुम्हारी चाहतें हुआ करती थी।

ऊँची से ऊँची चीज़ माँगो, फिर उसके लिए न्योछावर हो जाओ। छोटा-छोटा माँगोगे तो तुम्हे कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी, क्योंकि तुम्हे छोटे से संतुष्टि मिलनी ही नहीं है। होश पूर्वक चाहोगे, तो मुक्ति मिलेगी, सौंदर्य मिलेगा। बेहोशी में चाहोगे तो बेचैनी मिलेगी और क्रोध मिलेगा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org