क्रोध पर कैसे काबू पाएँ?

अगर सिर्फ़ क्रोध की घटना पर काबू पाना हो तो व्यावहारिक तौर पर बहुत सारी घटनाएँ हैं, सर पर पानी डाल लो या क्रोध आ रहा हो तो पूरा ही क्रोध कर डालो फिर अंजाम ऐसा होगा कि फिर बहुत दिनों तक क्रोध नहीं आएगा।

क्रोध की घटना है वो अवसर जब तुम फट पड़े और क्रोध है एक सुलगता हुआ जीवन।

क्रोध तो ऐसा है, जैसे किसी घर या होटल में फायर अलार्म लगा हो, जब धूँआ उठता है, तापमान उठता है तो वो बजने लग जाता है।

क्रोध तो एक रासायनिक घटना है, बाजार में ऐसी गोलियाँ हैं, जो क्रोध रोक सकती है लेकिन कोई भी गोली तुम्हारा जीवन नहीं बदल सकती। अब बताओ कि क्रोध की घटना मात्र पर काबू पाना है या जीवन बदलना है? क्रोध के पीछे एक ऐसा जीवन होता है, जिसकी कामनाएँ पूरी नहीं हो पा रही है, वो चिढ़ा हुआ है, फिर वो बीच-बीच में अनुकूल मौका देख करके फट पड़ता है, जहाँ पाता है सामने कोई ऐसा है जिस पर फटा जा सकता है, फट जाता है। जो कोई क्रोध में दिखे समझ जाना जीवन नारकीय जी रहा होगा, नहीं तो क्रोध कहाँ से आता?

जब चाहो तो बहुत सतर्क हो कर चाहो, यूँ ही मत चाह लिया करो, चाहना भली बात है, आदमी को चाहना पड़ेगा, आदमी बंधन में पैदा हुआ है और जो बंधन में पैदा हुआ है उसे मुक्ति तो चाहनी पड़ेगी, चाहो ज़रूर पर चाहते वक़्त सावधान रहो कि क्या चाह रहे हो। ऊँची से ऊँची चीज़ मांगो फिर उसके लिए निछावर हो जाओ।

होश पूर्वक चाहोगे तो मुक्ति मिलेगी, सौंदर्य मिलेगा, बेहोशी में चाहोगे तो बैचनी मिलेगी और क्रोध मिलेगा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org