क्रोध और ईर्ष्या से कैसे बचें?
जब ईर्ष्या का और क्रोध का आक्रमण होने वाला होगा तो तुम्हें बिल्कुल इच्छा नहीं करेगी कि कुछ ऐसा करूँ कि जो तुम्हें शान्ति की ओर ले जाता हो। वही मौक़ा है सतर्क रहने का और चूकने का।
असल में अपनी मुक्ति के लिए अपने ख़िलाफ़ जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। जो अपने ख़िलाफ़ नहीं जा सकता, वो मुक्ति को भूल ही जाये। बात थोड़ी विचित्र सी है। अपने को पाने के लिए, अपने ही विरुद्ध जाना पड़ता है। और है ऐसा ही।
आत्मा को पाने के लिए अहंकार के विरुद्ध जाना पड़ता है।
जितनी लड़ाईयाँ तुम्हें लड़नी हैं, वो तुम्हें लड़नी पड़ेंगी। कोई यह न सोचे कि उसने जो भी कुछ कर्मफल इकट्ठा किया है, वो यूँ ही हट जाएगा। जो तुमने इकट्ठा किया है, वो तो तुम ही ढोओगे।
हाँ, यह है कि ज्ञान रहेगा, बोध रहेगा, तो ढोने में सुविधा रहेगी, ढोने में शक्ति रहेगी, और ढोने में कष्ट ज़रा कम होगा। ढोना तुम्हें ही पड़ेगा।
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