क्यों लगता है सब ख़त्म हो गया?

मुक्तिबोध की एक पंक्ति है:

“मुझे पुकारती हुई पुकार खो गयी कहीं”

बड़े फायरब्रांड कवि थे मुक्तिबोध। तो कह रहे हैं कि एक पुकार उठती है और पुकार बड़े कष्ट की ही होती है कि, ‘ये क्या हो रहा है?’, ‘ये ज़िन्दगी कहाँ जा रही है?’ जीवन लगातार एहसास कराता है — अपने खाली होने का, अपने सूनेपन का, अपने अर्थहीन होने का- पर ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम उस पुकार को सुनो या न सुनो, और नहीं सुनोगे तो वो पुकार खो जायेगी। कुछ दिनों में वो पुकार आनी बंद हो जायेगी। तुमको ऐसा लगने लगेगा कि सब कुछ ठीक है, सब सामान्य है, सब सामान्य है। पर सब सामान्य नहीं हो गया है, सब ठीक नहीं हो गया है, इतना ही हो गया है कि तुम सुन्न पड़ गए हो। शरीर के किसी हिस्से पर जब बहुत ज़ोर से चोट लगती है, तो ऐसा भी होता है कि वो सुन्न पड़ जाये और दर्द का एहसास भी बंद हो जाये। दर्द का एहसास नहीं हो रहा है, इसका अर्थ ये नहीं है कि सब ठीक है। इसका अर्थ यही है कि बीमारी और गहरी हो गयी है।

तुम सड़क पर चलते लोगों को देखो, उनकी शक्लों को देखो, उनके जीवन को देखो, उनके हाव-भाव को देखो, अपने आस पास के समाज को देखो, और तुम्हें साफ़ — साफ़ दिखाई देगा कि सब बीमार हैं। सब बुरी तरह से बीमार हैं। घर को देखो, परिवार को देखो, जाकर दफ्तरों में देखो, और तुमको उनकी आँखों में बीमारी के अलावा कुछ और दिखाई देगा नहीं। डर दिखेगा, चिंता दिखेगी, संदेह दिखेगा, बोरियत दिखेगी। पर तुम उनसे पूछो कि ‘क्या हुआ, क्या तकलीफ है?’ तो वो कहेंगे ‘तकलीफ? सब कुछ अच्छा है। मैं तो एक बड़ा सामान्य आदमी हूँ, मैं तो एक ढर्रे की ज़िन्दगी बिता रहा हूँ’। और इनके आस-पास आने वालों से पूछोगे तो वो कहेंगे, ‘हाँ, हाँ बिल्कुल ठीक है एक सामान्य जीवन बिता रहा हैं ये। रोज़ सुबह घर से निकलता है, ऑफिस आता है, ठीक -ठाक कमा रहा है, घर जाता है जहाँ बीवी, एक-दो बच्चे हैं और बस ये ही इसका जीवन है। चल रहा है और सब लोग इसको मान्यता देते हैं। पर तुम जानोगे, अगर तुम गौर से देखोगे, तो समझोगे कि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ है, कोई बड़ी गड़बड़ है। सबसे बड़ी गड़बड़ है कि उसे अब ये गड़बड़ का एहसास होना भी बंद हो गया है। वो वेल एडजस्टेड हो गया है।

कृष्णामूर्ति ने कहा था- “अगर तुम एक बीमार समाज से पूरी तरह एडजस्टेड हो गए हो तो इससे ये बिल्कुल सिद्ध नहीं होता कि तुम स्वस्थ हो”।

अगर तुम एक बीमार समाज से पूरी तरह एडजस्टेड हो गए हो तो इससे ये बिल्कुल सिद्ध नहीं होता कि तुम स्वस्थ हो। इससे यही सिद्ध होता है कि तुम भी उतने ही बीमार हो, बल्कि शायद और ज्यादा। तो इसीलिए मैंने कहा था कि सौभाग्य है तुम्हारा कि तुमको वो क्षण आते हैं, घबराहट के, जब अचानक सब काला दिखाई देने लगता है, और मैं प्रार्थना करता हूँ कि वो क्षण यहाँ बैठे सभी लोगों…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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