क्यों लगता है सब ख़त्म हो गया?
मुक्तिबोध की एक पंक्ति है:
“मुझे पुकारती हुई पुकार खो गयी कहीं”
बड़े फायरब्रांड कवि थे मुक्तिबोध। तो कह रहे हैं कि एक पुकार उठती है और पुकार बड़े कष्ट की ही होती है कि, ‘ये क्या हो रहा है?’, ‘ये ज़िन्दगी कहाँ जा रही है?’ जीवन लगातार एहसास कराता है — अपने खाली होने का, अपने सूनेपन का, अपने अर्थहीन होने का- पर ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम उस पुकार को सुनो या न सुनो, और नहीं सुनोगे तो वो पुकार…