क्यों अपना वैभव भूले बैठे हो?

डर और तनाव इस बात के लक्षण हैं कि कहीं पर कोई जादू कर दिया गया है। तुम्हारे भीतर यह बात भर दी गयी है कि भिखारी हो। तुमसे कह दिया गया है कि जब तक तुम कुछ बन नहीं जाते, तुम किसी लायक नहीं हो। तुमसे कह दिया गया है कि अगर प्यार भी पाना है तो पहले उसकी काबिलियत पैदा करो। तुमसे कह दिया गया है कि संसार एक दौड़ है जिसमें तुम्हें जीत कर दिखाना है। और अगर तुम जीतते नहीं हो, तो तुम्हारी कोई कीमत नहीं। तुमसे कहा गया है कि तुम खाली हाथ हो। जाओ, लूटो, पाओ, अर्जित करो। यही तो है भिखारी होना। यही जादू कर दिया गया है तुम्हारे साथ। यही पानी पिला दिया गया है तुम्हें। इसी कारण डरे-डरे घूमते हो।

मैं तुमसे कह रहा हूँ कि यह पानी तुम्हें बचपन से ही पिलाया जा रहा है और दसों दिशाओं से पिलाया जा रहा है। टी.वी. खोलते हो तो यही पानी पिलाया जा रहा है, अखबार पढ़ते हो तो यही पानी पिलाया जा रहा है, परिवार यही, शिक्षा यही, समाज यही। यह सब तुममें लगातार यही स्थापित कर रहे हैं, अधूरेपन का भाव। लगातार यही कहा जा रहा है कि कुछ खोट है तुममें। परिवार कह रहे है कि दूसरे को देखो, कितना ऊँचा और तुम कुछ नहीं। खोट है तुममें। मीडिया तुमसे कह रहा है कि अरे तुम्हारे चेहरे का रंग गाढ़ा है, खोट है तुममें। यह क्रीम लगाओ। सिनेमा तुमसे कह रहा है कि अरे इतनी उम्र हो गयी और कोई साथी नहीं मिला तुम्हें। कोई खोट हैं तुममें। शिक्षा तुमसे कह रही है कि अरे बस इतने प्रतिशत अंक ही पाये हैं, कुछ खोट है तुममें। जाओ और अंक पाओ।

हर ओर से तुम्हें संदेश लगातार यही दिया गया है कि तुम नाकाफ़ी हो। यही वो पानी है जो तुम पी रहे हो और तुमे इस पानी को ही अमृत मान रखा है।

तुम सोचते हो कि वो लोग जो तुमसे कहते हैं कि कुछ बन कर दिखाओ, वो तुम्हारे सबसे बड़े हितैषी है। नहीं, वो तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। क्योंकि ‘बन कर दिखाओ’ में यह भाव पहले आता है कि ‘मैं अभी कुछ नहीं हूँ’। वो लगातार तुमसे कह रहे हैं कि अभी तुम जैसे हो, बेकार हो, व्यर्थ हो। वो तुमसे कह रहे हैं कि भविष्य सुनहरा हो। पर भविष्य आता कब है? जीते तो हम सदा वर्त्तमान में हैं। चारों ओर तुम्हारे जादूगर ही बैठे हैं। वो कहते हैं-

बस एक ही उल्लू काफी था बर्बाद ऐ गुलिस्ताँ करने को,

हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा?

यहाँ तो चारों तरफ जादूगर बैठे हैं। हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा? गुलिस्ताँ तो उजड़ ही जाएगा, जैसे तुम उजड़े हुए बैठे हो। डर, तनाव। आक्रान्त हो, जैसे कोई तुम पर हमला कर देगा। आँखों में आनंद नहीं, बस एक दहशत की छाया है। दो शब्द तुमसे उठकार बोले नहीं जाते। एक-एक कदम उठाते हो तो सहमा हुआ। जीवन ऐसा ही नहीं है? मन में हमेशा बस यही…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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