क्या है जो बदलता रहता है, और क्या जो कभी नहीं बदलता?

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।

~ (श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय २ श्लोक १२)

भावार्थ: ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं किसी भी समय में नहीं था, या तू नहीं था अथवा ये समस्त राजा नहीं थे और ना ऐसा ही होगा कि भविष्य में हम सब नहीं रहेंगे।

प्रश्नकर्ता: ये एकदम ऐसा प्रश्न है जो हर देश, काल, हर टाइम-फ्रेम में एकदम सटीक होता है। इसमें भगवान ने सब बातें कह दीं। इसी में कह दीं। कहा कि हर युग में तुम रहोगे, मैं रहूँगा, ये सब सिस्टम रहेगा, ये कमियाँ रहेंगी अच्छाईयाँ रहेंगी, ये बुराइयाँ रहेंगी।

तो, हम आखिर सुधार क्या रहे हैं?

आचार्य प्रशांत: हम सुधार रहे हैं अपने दुःख को।

कृष्ण अर्जुन को यही तो कह रहे हैं न कि अर्जुन हर युग में दुनिया है, तू है, और मैं हूँ। ये 'तीन' कौन हैं इनको समझना पड़ेगा। बड़ा अच्छा प्रश्न है। सांख्य योग से प्रश्न करा है कि कृष्ण अर्जुन को आरंभ में ही, दूसरे अध्याय में ही उच्चतम ज्ञान देते हुए कहते हैं कि, "अर्जुन ऐसा कोई समय कभी रहा है कि ये (सभी सेनाएँ) ना रहे हों, या तू ना रहा हो, या मैं ना रहा हूँ।"

ये 'तीन' कौन हैं? ये तीन हैं: आत्मा, मन और संसार। कृष्ण हैं आत्मा, अर्जुन है मन और आसपास जो ये विस्तृत दिखता है इसको कहते हैं संसार। मन के एक ओर है संसार और मन के पीछे है आत्मा। मन के आगे क्या है? संसार; मन के पीछे क्या है? आत्मा। मन की आँखें संसार की ओर हैं तो मन किसमें खोया रहेगा? ज़ाहिर सी बात है, संसार में। आत्मा मन का स्त्रोत है, पर वो मन के पीछे है तो मन को वो दिखाई नहीं देती। तो मन उसमें लगातार…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org