क्या सेक्स का कोई विकल्प है जो मन शांत रख सके?
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घर में बच्चे होते हैं छोटे, उन्हें कुछ-न-कुछ उपद्रव करना है। जैसे-जैसे वो डेढ़-दो साल के हो गए, उनकी ऊर्जा बढ़ने लगती है, और काम -धंधा अभी कुछ है नहीं। स्कूल में अभी भी प्रवेश मिला नहीं। तो जो दो साल वाले होते हैं, ये बड़े ख़तरनाक हो जाते हैं, क्योंकि ये चलते भी हैं, ये बोलते भी हैं। ये पालना झूलने वाले नहीं हैं, ये पालने में नहीं पड़े हैं। ये चलते हैं, ये बोलते हैं और ज़िम्मेदारी इनपर कुछ है नहीं। तो ये तोड़-फोड़ मचाएँगे, ये करेंगे, वो करेंगे।
जो ही चीज़ मिलेगी, ये उसी चीज़ को पकड़ना चाहेंगे। एक काम और करते हैं ये दो साल के बच्चे। जानते हो क्या? ये अपने शरीर को भी खिलौना बनाते हैं। उसकी शुरुआत पहले से ही हो चुकी होती है, जब वो तीन-चार महीने, पाँच महीने के होते हैं। कभी अँगूठा चूसेंगे, कभी पाँव का अँगूठा पकड़लेंगे, कभी पाँव मुँह में डाल लेंगे। कभी कुछ करेंगे।
और शरीर से खेल रहे हैं, क्योंकि उन्हें कुछ तो चाहिए। मन चंचल है, उसे कुछ तो पकड़ना है। किसी-न-किसी चीज़ से तो उपद्रव करना है। तो ये बच्चे ऐसा भी करते हैं कि अपना जननांग भी पकड़ लेंगे। फिर माताएँ आतीं हैं छुड़ाने — “छोड़ो, छोड़ो, गंदी बात। ये नहीं करते।”
और वो कुछ नहीं कर रहा है, खेल रहा है मस्त।
उसको चाहिए कुछ, उसको खिलौना चाहिए। वो बुरा बच्चा नहीं है, उसके पास ऊर्जा बहुत है, उसे खेलना है। तो फिर माँ लाकर उसे खिलौना दे देगी, विधि लगाएगी कि बच्चा व्यस्त हो जाए। वही हाल वयस्कों का है।
वो दो साल का बच्चा कहीं ख़त्म थोड़े ही हो जाता है, वो दो साल का बच्चा लगातार हमारे भीतर बना रहता है। उसको अगर तुम जीवन में कोई सार्थक खिलौना नहीं दोगे, तो फ़िर वो अपने ही अंगों को पकड़कर खेलेगा। और ऐसा नहीं है कि वो सिर्फ़ जननांग से ही खेलता है, वो फ़िर सारे ही अंगों से खेलता है।
खेलना का क्या मतलब है? जिस चीज़ को तुम पकड़ लो, जिस भी चीज़ पर तुम्हारी पकड़ बन जाए। तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी पकड़ नहीं बनी हुई है क्या? देखा है कितनी बार अपने चेहरे को देखते हो? कोई तो बोल रहा था कि, “कंघी करता हूँ, और बाल कितने टूटे हैं, ये गिनता हूँ।” ये क्या है? ये तुमने बालों पर अपनी पकड़ बना ली है। क्योंकि तुम्हें कुछ तो पकड़ना है, तो तुमने बाल पकड़ लेते हो।
कभी चले जाओ, ये जो सैलून होते हैं, वहाँ देखो — चेहरा कैसे पकड़ा जाता है, पाँव कैसे पकड़ा जाता है। देवी जी बैठी हुई हैं, वो कह रही हैं, “और घिसो अँगूठा।” ज़िंदगी में कुछ करने को नहीं है, तो तीन-तीन घंटे अँगूठा घिसा जा रहा है। ये वही छोटा बच्चा है जो अपना अँगूठा चूस रहा था, जो अपना जननांग पकड़कर बैठ गया था।