क्या सिर्फ़ राम को याद रखना पर्याप्त है?

प्रश्नकर्ताः ‘नहिं कलि करम न भगति बिबेकु, राम नाम अवलंबन एकु’ — आपको भी सुना कई बार कि नाम एक ऐसी चीज़ है जो निराकार और साकार दोनों के बीच का है। तो मैं बच्चों को ये भी बताता हूँ कि प्रभु के नाम का सहारा लो, उनका स्मरण करो । हर काम करो तो प्रभु को याद करके करो, उनको केन्द्र में रखकर, उनको धन्यवाद देकर करो। ‘देह भाव से मुक्त होकर’ कुछ ऐसा भी बताता हूँ। तो इसमें मैं खुद क्या करुँ? मैं खुद अंधेरे में हूँ कि प्रभु के नाम का सहारा लिया जाए, उनको स्मरण किया जाए कि इसके अलावा जो रौशनी देने का, समझाने का सत्संग करता हूँ, तो उस संदर्भ में इसको आप थोड़ा और स्पष्ट करें।

आचार्य प्रशांतः “मैं क्या करूँ?” बहुत अच्छा प्रश्न नहीं है, कभी भी बहुत अच्छा प्रश्न नहीं है।

सब इसे ध्यान से समझेंगे।

“मैं क्या करूँ?” बहुत प्रचलित प्रश्न है, बहुत आम सवाल है लेकिन बहुत अच्छा सवाल नहीं है।

अच्छा सवाल यह है कि — “मैं क्या होकर करूँ?” “मैं क्या बनकर करूँ?”

“जब मैं कर रहा हूँ तब मैं कौन हूँ?”

“जब मैं कर रहा हूँ तब मैं हूँ कौन?”

और तुम्हारे सामने हर विकल्प खुला है। ‘अहं’ वह जो किसी से भी जाकर के सम्प्रत हो सकता है, किसी की भी पहचान पहन सकता है, किसी से भी नाता जोड़ सकता है। तो तुम चाहो तो रावण होकर भी कर सकते हो, तुम चाहो तो राम होकर भी कर सकते हो।

पुरानी कहानियाँ सब इसीलिए तो है कि तुम्हें बताएँ कि जो रावण होता है वह क्या करता…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org