क्या सत्य सबके लिए अलग-अलग होता है?

प्रश्नकर्ता: क्या मेरा सत्य और किसी और का सत्य अलग हो सकता है?

आचार्य प्रशांत: आप हैं दूसरे से अलग? मेरा सत्य माने क्या? सत्य का अर्थ ही होता है कि ‘आप’ के लिए नहीं है, ‘आप’ ही नहीं है, यह पहला सूत्र है आध्यात्मिकता का कि आपको बचा कर सत्य जैसा कुछ नहीं होता। आप के लिए सत्य कैसा होगा, सत्य कोई सिधांत है क्या? कि मेरे सिधांत दूसरे के सिधान्तों से अलग हैं। सत्य क्या है? बताइये, अलग–अलग कैसे करोगे? ज़रा बताइए आपका और आपके पड़ौसी का अलग –अलग कैसे हो जाएगा? क्या है सत्य? खरबूजा है कि, सेब है कि, जूता है कि, चावल है, दाल है कि, क्या है, जो अलग-अलग हो सकता है कि, रंग है कि मेरा पीला है उसका लाल है कि, छोटा है कि बड़ा है, मेरा दो इंच का है कि, उसका आठ इंच का है, क्या है? कि तनख्वाह है, सत्य क्या है? कि आप जिसकी तुलना कर लोगे या भेद कर लोगे कि मेरा उसका अलग-अलग है।

बताने वाले आपको बता-बता के थक गए कि सत्य वो जो अनिर्वचनीय है, जो कहा ही नहीं जा सकता, आपने उसकी तुलना भी कर डाली! और तुलना करके यह भी कह दिया कि अलग-अलग है! एक भी नहीं है, दो कहाँ से हो गया?

अद्वैत का क्या अर्थ होता है? दो-नहीं, एक भी नहीं।

हम तो रह गए पीछे, दुनिया निकल गयी आगे! अब कैसे बताएँगे कि हमारे पास क्या-क्या है! हम किसी को बताएँगे कि हमारे पास यह डिग्री है, हमारे पास इतना संपर्क है, हमारे पास बड़ा नेटवर्क है, हमारे पास बड़ी अच्छी छवि है, यह है — वो है, शशि कपूर की तरह सामने वाला बोल देगा, ‘मेरे पास सत्य है’, तो हम तो रह गए पीछे! क्योंकि ये कौन सी चीज़…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org