क्या श्रीराम भी दुःख का अनुभव करते होंगे?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, क्या प्रभु श्रीराम को भी सामान्य व्यक्ति की तरह दुःख का अनुभव होता था?

आचार्य प्रशांत: प्रश्न है कि अनेक कहानियाँ कहती हैं कि राम को भी चोट लगती थी। ख़ास तौर पर सीता के वन-गमन के पश्चात राम भी उदासी में जीने लगे थे। मानने वालों का ये भी मानना है कि राम की जल समाधि उनके दुःख का ही फल था।

तो इसमें आश्चर्य क्या है? राम जो पुरुष हैं, जो मानव हैं, वो सब कुछ कर रहे हैं जो एक मानव करता है। बालि-सुग्रीव संग्राम हो रहा है, बालि जीतता प्रतीत हो रहा है। राम पेड़ के पीछे से बालि को तीर मार देते हैं। बालि पूछता है, “ये क्या किया? क्या ये बेईमानी नहीं है?” राम कहते हैं, “तुमने जो किया वो क्या था? तुम भाई की पत्नी को उठा लाए हो, वो क्या है?”

राम के चरित्र में तुम्हें मानव होने के सारे गुण मिलेंगे और इसी में तुलसी के राम की महानता है। अगर उनका राम कोई हिमालय जैसा ऊँचा आदर्श बन जाए, तो तुम्हारी पहुँच से इतना दूर हो जाएगा कि तुम्हारे लिए बस वो एक देवता रह जाएगा; वो तुम्हें कुछ दे नहीं पाएगा। तुलसी ने राम के चरित्र में कुछ ऐसा ढूँढ लिया है जो इंसान से आगे की बात है। राम जो कि कभी इंसान थे, उनमें तुलसी ने कुछ ऐसा देख लिया जो इंसान से आगे की बात है।

“राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है। कवि कोई बन जाए सहज सम्भाव्य है।”

“तुम्हारी कहानी इतनी मीठी थी कि उसने मुझे कवि बना दिया। मेरी कल्पना को पर दे दिए।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org