क्या श्रीकृष्ण अर्जुन से हिंसा करवाते हैं?
हिंसा होती है अपूर्णता के भाव से कर्म करने में जहाँ तुम्हारे भीतर द्वैत उठा, जहाँ तुम्हें लगा — मैं अपूर्ण और सामने जो भी है वह भी अपूर्ण — और जहाँ तुम्हें लगा कि यह दोनों अपूर्ण मिलकर पूर्ण हो जाएँगे, तहाँ हिंसा हो गई। जहाँ तुमने अपनापन और परायापन देखा, वहीं हिंसा हो गई। जहाँ तुम्हें दो दिखे, वहीं हिंसा हो गई। अब दूसरे का, जैसा मैंने कहा, तुम गला काटो तो भी हिंसा क्योंकि गला काटा तो भी दूसरा, दूसरा था, और दूसरा दिख…