क्या शुद्ध शाकाहार पूर्ण पोषण दे सकता है

दूध न लेने का निर्णय तुम्हारे बोध से निकले तो ही पक्का होगा। नहीं तो कुछ दिनों तक तुम अपनेआप को घसीटोगे, फिर गिर जाओगे, फिर हिम्मत जवाब दे जाएगी।

मैंने दोनों तरह के लोग देखे हैं — ऐसे भी जो उत्साह में जल्दी-जल्दी फैसला के लेते हैं कि ये छोड़ देंगे, वो छोड़ देंगे; वो दो ही महीने में फ़िर वापस वहीं आ जाते हैं जहाँ से शुरू किए थे, उनका सारा उत्साह, सारा संकल्प क्षीण। और दूसरे भी होते हैं जो समझ-समझ के आगे बढ़ते हैं, और समय के साथ उनका संकल्प और पक्का होता जाता है। वो यही नहीं कहते कि — “हम नहीं खा रहे,” वो ये भी कहते हैं कि — “हम दूसरों को भी बताएँगे कि खाना लाभप्रद नहीं है।”

दोनों तरह के लोग होते हैं।

जल्दबाज़ी में कुछ मत करो, ये कोई फ़ैशन की बात नहीं है; ये ज़िन्दगी की बात है, ये आत्मा की बात है। नहीं तो तुम्हारे मन में शिकायतें ही शिकायतें उठ आएँगी, कि — “मैंने तो अच्छा काम किया और नतीजा बुरा मिला।” ऐसे नहीं करते। समझ-समझ के आगे बढ़ो।

मैं ये भी नहीं कह रहा कि तुम हड़बड़ी में खाना-पीना छोड़ दो। तुम्हें जबतक भीतर से गहरी आश्वस्ति नहीं आ रही, तब तक तुम धीरे-धीरे क़दम बढ़ाओ। नहीं कहा जा रहा तुम्हें कि एक झटके में ही सब कुछ छोड़ दो। तुम एक महीने, चार महीने का समय ले लो। पढ़ो, समझो कि जो कहा जा रहा है उसके पीछे कारण क्या है, और कारण तुम्हें जंचे, तुम्हारा मन ख़ुद राज़ी हो, मन कहे, “नहीं, बात बिल्कुल ठीक है, हम नहीं शोषण करना चाहते। हम नहीं किसी का हक मारना चाहते,” तब फिर तुम छोड़ो। तब उस छोड़ने में जान…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org