क्या शादी कर लेने से अकेलापन दूर हो जाएगा?
प्रश्नकर्ता: नमन आचार्य श्री, मैं शादी करने जा रहा हूँ। मगर मैं समझ रहा हूँ कि ये अच्छा नहीं हो रहा। मगर दूसरी तरफ़ मुझसे ये अकेलेपन से भरी हुई ज़िंदगी बर्दाश्त नहीं होती। कृपया मार्ग दिखाएँ।
आचार्य प्रशांत: अब तो मंज़िल ही मिल गई, मार्ग क्या दिखाऊँ?
(श्रोतागण हँसते हैं)
मार्ग तो उनके लिए होता है बेटा जो अब कहीं को जा सकते हों। जिनके लिए आगे बढ़ना, निकलना, यात्रा करना संभव हो, मार्ग उनके लिए होते हैं। जो अपने ऊपर सब दरवाज़े बंद करने जा रहे हों, उनको मार्ग क्या बताऊँ? मैं मार्ग बता भी दूँगा तो उसपर चलोगे कैसे?
(पास में बैठे श्रोता से) तुम क्यों परेशान हो रहे हो? जवाब इधर दे रहा हूँ, दहशत इधर छा रही है।
(श्रोतागण हँसते हैं)
मैं नहीं कह रहा विवाह ग़लत है। मैं तुम्हारे ही वक्तव्य का हवाला दे रहा हूँ। तुम कह रहे हो, “मैं शादी करने जा रहा हूँ मगर मैं जान रहा हूँ कि ये मेरे लिए अच्छा नहीं है।” अगर जान रहे हो, तो क्यों कर रहे हो बेटा? ये जो तुमने अपनी प्रेरणा बताई कि अकेलापन बर्दाश्त नहीं होता। अरे, कुछ और कर लो। अकेलापन मिटाने के बहुत तरीक़े हैं — मेला-ठेला घूम आओ, दोस्त-यार बना लो, भारत भ्रमण कर लो, कुछ कर लो। एक जगह टिकट कट रहे हैं चाँद पर जाने के, मंगल ग्रह पर जाने के, वहाँ घूम आओ। अकेलेपन का क्या है, वो तो कार्टून चैनल देखकर भी मिट जाता है।
(सभी श्रोतागण हँसते हैं)