क्या शादी करने से अकेलापन दूर हो जाएगा

मूल अकेलापन है अहमवृत्ति की अपूर्णता। वो किसी से शादी कर लेने से थोड़े ही मिट जाएगी भाई! तुम कर लो विवाह, पर ये उम्मीद मत रखना कि उससे अकेलापन कम हो जाएगा। कर लो! शरीर की वासनाएँ इत्यादि हों, उनकी पूर्ति के लिए तुमको यही ज़रिया दिखता हो कि विवाह करना है तभी जीवन में एक स्त्री देह आएगी तो विवाह कर लो। लेकिन ये मत सोचना कि उस स्त्री देह के आ जाने से तुम्हारा अकेलापन मिट जाएगा, वो नहीं होगा। हाँ, संभोग इत्यादि के अवसर खूब उपलब्ध हो जाएँगे, वो सब हो जाएगा। बच्चे वगैरह हो जाएँगे, घर-खानदान खड़ा हो जाएगा। माता-पिता इत्यादि अगर तुमसे उम्मीदें कर रहे होंगे तो वो उम्मीदें पूरी हो जाएँगी, वो सब चीज़ें हो जाएँगी और जैसा आमतौर पर भारत में होता है, विवाह के बाद पति का वज़न बढ़ जाता है, वो सब हो जाएगा। बढ़िया घर का पका खाना मिलने लगेगा। घर सुव्यवस्थित रहेगा,कपड़े-लत्ते ठीक रहेंगे, चेहरे पर चमक आ जाएगी। ये सब होता है विवाह के बाद, वो सब हो जाएगा। दहेज इत्यादि मिल जाएगा, बाइक पर चलते होगे तो गाड़ी आ जाएगी। समाज में थोड़ा सम्मान बढ़ जाएगा। किराए पर घर मिलने लगेगा। वो सब हो जाएगा। लेकिन इस सब से अकेलापन नहीं दूर होने वाला। लोग न जाने क्या-क्या करते हैं, तुम विवाह कर लो, ठीक है। लोग जो कुछ करते हैं, उससे भी अकेलापन नहीं दूर होता, न विवाह से दूर होगा। वो अकेलापन तो जहाँ से दूर होना है, जानते ही हो अगर ग्रन्थों से जुड़े हो, अगर मुझको सुनते हो।

किसी स्त्री में इतनी कहाँ से ताकत आ गई कि तुमको परमात्मा से मिलवा देगी भाई? कौन सी लड़की, कौन सी औरत है जो वास्तव में किसी के मन का सूनापन भर सकती है? और कौन सा लड़का, कौन सा पुरुष है जो किसी स्त्री के मन का सूनापन भर सकता है? असम्भव। जो लोग इस उम्मीद के साथ विवाह करते हैं कि सूनापन, अकेलापन, तन्हाई मिट जाएगी, उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। और सभी इसी से उम्मीद करते हैं। कम-से-कम ऊपर-ऊपर यही उम्मीद रहती है। अंदर-अंदर भले ही देह की तृष्णा रहती हो, ऊपर-ऊपर तो यही बताते हैं कि,“वो ज़रा तन्हाइयाँ मिटाने के लिए एक हमसफर चाहिए”। तन्हाई इत्यादि नहीं मिटती, हाँ, किलकारियाँ गूँजने लग जाती हैं, वो हो जाता है। पहले कहते थे, “रातों को तन्हाई के मारे नींद नहीं आती”। अब कहोगे, “रात भर ये चाएँ-चाएँ चिल्लाता है, मेरी तन्हाई का उत्पाद, तो नींद नहीं आती”। नींद तो बेटा पहले भी नहीं आती थी, अभी भी नहीं आएगी। पहले इसलिए नहीं आती थी कि स्त्री उपलब्ध नहीं थी। फिर रात भर इसलिए नहीं सोओगे कि नई-नई मिल गई है स्त्री देह। तो कहोगे, “न खुद सोएँगे, न तुझे सोने देंगे रात भर”, और फिर जब उत्पाद सामने आएगा तो फिर वो नहीं सोने देगा तुम दोनों को। तो नींद और विश्राम तो उपलब्ध होने ही नहीं हैं, तुम इस तरीके के चाहे जितने तरीके आज़मा लो।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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