क्या शक्ति ही शिव का द्वार हैं?
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आचार्य प्रशांत: विष्णु भगवान सो रहे हैं। तो इनके कानों के मैल से दो असुर पैदा हो गए, मधु और कैटभ। इन्होंने बड़ा उत्पात मचाया। और ये ब्रह्मा को मारने को तत्पर हो गए, बोले कि मारेंगे ब्रह्मा को। और लगे हैं पीछे ब्रह्मा के, ब्रह्मा वहाँ से भागे कि यह क्या हुआ, यह क्या विपत्ति आयी? विष्णु के पास आए, देखा कि वो सो रहे हैं। तो ब्रह्मा समझ गए कि विष्णु नहीं उठेंगे, कोई विशेष बात ही है जो इन्हें सुलाये हुए हैं। विष्णु अपनी योग निद्रा में हैं। तो तब उन्होंने महामाया का स्तवन किया, स्तुति की और बोले कि आप से ऊँचा कौन हो सकता है! आप जो स्वयं भगवान को भी सुला सकती हैं, आपकी मैं स्तुति भी कैसे करूँ! मैं ऐसा क्या बोलूँगा जो पर्याप्त होगा आप की प्रशंसा हेतु! कुछ नहीं कह सकता मैं। आप से ऊँचा कोई नहीं। आपमें वह शक्ति है कि आप स्वयं भगवान को भी निद्रा में डाल सकती हैं। तो ऐसा कह करके ब्रह्मा जी ने महामाया की स्तुति की।
ये सारी बातें हम कह चुके हैं कि सांकेतिक हैं। समझना। स्तुति करी महामाया की। तो फिर महामाया विष्णु जी की आँखों से और भौंहों से प्रकट हो करके बाहर आईं और विष्णु भगवान जग बैठें। जब उठ बैठें तो ब्रह्मा जी ने उनको सारा हाल कह सुनाया। जब हाल कह सुनाया तो विष्णु बोले कि ठीक है। और फिर कहानी कहती है कि मधु-कैटभ से उनका पाँच हजार साल तक युद्ध हुआ। और तब भी वह दोनों हारे नहीं। जब हारे नहीं तो महामाया का खेल, उन्होंने मधु-कैटभ की मति ऐसी कर दी कि उनको लगा कि विष्णु तो बड़े वीर योद्धा हैं, हम दोनों जैसे पराक्रमी असुरों से इतने दिनों से, इतने वर्षों से अकेले ही युद्ध कर रहे हैं।
तो वो दोनों प्रसन्न हो गए और विष्णु से बोले, “माँगो, क्या वरदान माँगते हो?” लड़ते-लड़ते दोनों जो हैं, जैसे देख रहे हो और विष्णु के ही प्रशंसक हो गए। बोले कि यह तो बड़ा बढ़िया योद्धा है। हम जैसे पराक्रमी असुरों से लड़ रहा है। ले-देकर उसमें अपनी ही बड़ाई की है। पर बात यह है कि यह तो बड़ा पराक्रमी है, हम जैसे दो से लड़ रहा है। तो एक दूसरे की ओर देखा ही होगा आँख-आँख में, बोले होंगे कि इसको तो वरदान देते हैं। बोले, “क्या वरदान चाहिए?” माया का खेल। विष्णु तो अब माया से मुक्त हैं, बोलते हैं कि मुझे एक ही वरदान चाहिए, तुम दोनों मेरे ही हाथों मरो। फँस गए दोनों बेचारे।
फिर से उन्होंने बुद्धि लगाई और बुद्धि बेचारी कितनी चलती है, इसके बारे में तो मेधा मुनि हमें बता ही चुके हैं कि जानवरों से ज़्यादा बुद्धि चलती नहीं किसी की। तो बोलते हैं, “ठीक है, हमें मार लेना पर ऐसी जगह पर मारना जहाँ पर जल ज़रा भी न हो।” उन्होंने यह देखा कि जिधर को भी देखो, वहाँ जल कुछ-न-कुछ राशि में तो होता ही होता है, वह समय ऐसा था। कहते हैं कि प्रलय काल, जब जो पूरी पृथ्वी ही थी वह जल आप्लावित हो गई थी, चारों तरफ बस पानी था। तो उन्होंने कहा कि ऐसी जगह मारना जहाँ जल बिल्कुल न हो। तो सोचा कि हमने तो बढ़िया चाल चल दी, अब हमें नहीं मार पाएँगे ये। तो विष्णु ने कहा, “हाँ।” और…