क्या विवेकी मन भी कभी विचलित और आसक्त होता है?

विवेक की आवश्यकता गुणों की उपस्थिति में ही पड़ती है न? मुक्त पुरुष के लिए विवेक का क्या काम? तुम अवधूत गीता के पास जाओ, तुम अष्टावक्र गीता के पास जाओ, वो स्पष्ट कहते हैं, विवेक की ज़रूरत ही क्या है? लेकिन ये बातें आम-आदमी के लिए नहीं है, ये बातें सिर्फ उनके लिए हैं जो मुक्त हो गए। इनको उपदेश मत मान लेना, ये बस अपनी हालत बयान की गई है, ये तुम्हें इसलिए बताई गयी है ताकि तुम आकर्षित हो सको।

चाहे अष्टावक्र हो, चाहे दत्तात्रेय हो, चाहे कबीर साहब हो, उन्होंने कई बार अपने बारे में कुछ बोला है, उन बातों को बस सम्मान पूर्वक पढ़ लो और आगे बढ़ो। तुम्हारा ज़्यादा ध्यान, उन बातों पर होना चाहिए जो उन्होंने तुम्हें दी है, सिखाई है।

विवेक से पार जाने की बात भी बहुत संतों, ऋषियों ने करी है। वो बात करेंगे ही क्योंकि विवेक कोई आखरी चीज़ नहीं है, विवेक भी एक उपकरण है, विवेक उपकरण उनके लिए है जिन्हें सार-असार, सत्य-असत्य, उजाला-अँधेरा दोनों दिखते है, जिनमें अभी स्वयं ही दृष्टि दोष बाकी है।

विवेक की ज़रूरत हर उस व्यक्ति को है जो अभी फँसा हुआ है, जो युद्ध के बीच में है।

ये मत सोच लीजिएगा की आप में विवेक आ गया है तो दुनिया और माया और प्रकृति और उसके गुण आप पर आक्रमण करना या आपको आकर्षित करना छोड़ देंगे, वो तो करेंगे ही। साधना जीवन भर की होती है, कोई उसका अंतिम बिंदु नहीं होता।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org