क्या वासनाओं का दमन आवश्यक है?

प्रश्नकर्ता (प्र): आचार्य जी, क्या वासनाओं का दमन आवश्यक है?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): दबाना भी एक विधि है। शम-दम ये भी आवश्यक होते हैं। वासनाएँ तो भीतर बहुत समय तक बनी रहेंगी, निर्बीज नहीं हो जाओगे। और तुम ये इंतज़ार नहीं कर सकते कि जब वासनाएँ समूल नष्ट हो जाएंगी सिर्फ तभी तुम वासना मुक्त जीवन जीओगे। तो वासनाओं के दमन का भी अध्यात्म में बड़ा स्थान है। शमन-दमन आना चाहिए। दमन पर्याप्त नहीं है पर दमन आवश्यक ज़रूर है। आज की आध्यात्मिकता ने सप्रेशन को गंदा शब्द बना दिया है। बार — बार कहते हैं, “नहीं-नहीं डोंट सप्रेस”। सप्रेशन भी ज़रूरी होता है। मन को दबाना पड़ता है, इच्छाओं को मारना पड़ता है। वो सीखो!

वो काफी नहीं है, उससे आगे जाना पड़ेगा क्योंकि बहुत समय तक अगर मन को दबाते रहोगे तो वो विद्रोह कर देगा। लेकिन वो ज़रूरी है। काफी नहीं है , लेकिन ज़रूरी है! तो वो भी सीखो!

फिर दमन के पश्‍चात् मन के शोधन की, मन को निर्मल करने की और विधियाँ हैं, उनको लगाओ।

प्र: मन विद्रोह कर चुका हो तो क्या करना है?

आचार्य: तो बेटा, “अभी तुम दमन और करो”। तुमने दमन करा ही नहीं तो मन ने विद्रोह कैसे कर दिया? अभी तो तुम मनचले हो। मनचला कह रहा है कि, “मेरा मन दमन के विरुद्ध विद्रोह कर रहा है”, तो झूठ बोल रहा है! विद्रोह तो मैं तब बता रहा हूँ कि हो सकता है कि जब तुमने मन का अतिशय दमन कर दिया हो। तुमने तो अभी दमन की शुरुआत भी नहीं करी। तुम्हारा मन कैसे विद्रोह कर रहा है?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org