क्या राष्ट्रवाद हिंसक है, और सेना हिंसा का माध्यम?

स्वयंसेवी: अनिल ठाकुरी और अनिकेत तमराकर से दो अलग-अलग प्रश्न हैं, जिनको संयुक्त कर दिया गया है। कह रहे हैं कि हाल में आपका वीडियो सुना, शीर्षक था: “वेदान्त के ज्ञान से, सेना के सम्मान तक”। मेरे मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं। पहला, देशों की और जमीन के भौगोलिक बंटवारे की जरूरत क्या है? इन बंटवारों का कारण और परिणाम सेनाएं हैं, और फिर युद्ध होते हैं, जिनमें ना जाने कितने लोग मारे जाते हैं, और संसाधनों का अपव्यय होता है। पूरी पृथ्वी को एक मानकर भी तो जिया जा सकता है, विश्वबंधुत्व की भावना से, और विश्वबंधुत्व तो देशप्रेम से कहीं आगे की बात हुई ना?

यह पहला प्रश्न है और अगला है कि सेना तो सत्तासीन सरकार की गुलाम होती है, बहुत सी सरकारें तो सेना को पेशेवर हत्यारों के रूप में भी इस्तेमाल करती हैं। यह हुई दूसरी शंका, और जिज्ञासा का तीसरा हिस्सा है कि क्या सेना इत्यादि में विश्वास रखकर, और राष्ट्रवाद, देशप्रेम जैसी भावनाओं को प्रश्रय देते हुए भी, अध्यात्म में ऊंचा उठा जा सकता है?

आचार्य प्रशांत: जैसे कि हर मुद्दे की शुरूआत होती है, इस उत्तर की शुरुआत भी उसी के साथ की जानी चाहिए जिससे सब शुरुआतें हैं: मनुष्य, इंसान।

दुनिया का कोई भी मुद्दा हो, इंसान के लिए ही है ना? आप कोई भी प्रश्न पूछते हैं, उसके केंद्र में तो मनुष्य, उसकी शंकाएं और उसके दुःख ही हैं ना? आप देशों के बारे में पूछें, चाहे राष्ट्रों और सेनाओं के बारे में: देश में मनुष्य हैं, सेना में मनुष्य हैं, और देश और सेना को लेकर जिसको दुविधा हो रही है, वह भी मनुष्य…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org