क्या माँस खाना गलत है?

जानवर वगैरह की परवाह छोड़ो, चाहे जानवर हो, सब्ज़ी हो या कुछ और हो, बात खाने की नहीं है। तुम यह पूछो कि जो कर रहा हूँ वह करते समय होश है मुझे?

दो ही बातें होती हैं जिनसे ज़िंदगी जीने लायक रहती है — एक होश और एक प्रेम। तुम चबाओ मच्छी, अगर प्रेम में भरे होकर चबा सकते हो तो खूब चबाओ। यह ना पूछो कि माँस खाना सही है या गलत है, तुम यह पूछो कि माँस खाते वक़्त चित्त की दशा क्या रहती है — प्रेम में भरा हुआ रहता हूँ या भीतर सूक्ष्म हिंसा के दांतों से तुम किसी का माँस नोंच रहे होते हो।

कोई गलती नहीं है माँस खाने में अगर तुम प्रेमपूर्वक खा सको, तुम यह कर सकते हो तो खूब खाओ और अगर तुम हिंसा में भरकर माँस चबा रहे हो मछली का, तो फ़िर हिंसा में भरकर तुम किसी का भी माँस चबा सकते हो। फिर तुम जिसके भी माँस का स्पर्श करोगे वो काटने, चीरने, शोषण करने के लिए ही करोगे — चाहे वह अपने बच्चे का ही क्यों न स्पर्श करो, चाहे अपनी पत्नी का ही क्यों न स्पर्श करो। माँस से तुम्हारा फिर एक ही रिश्ता रह जाएगा कि — मेरी भूख मिटे माँस से।

होशपूर्वक तुम किसी का अगर क़त्ल कर सकते हो तो बेशक करो, प्रेमपूर्वक तुम किसी का खून बहा सकते हो तो बेशक बहाओ। बात का सम्बन्ध उससे नहीं है कि उसको मार दिया या क्या कर दिया, बात का सम्बन्ध तुमसे है कि — तुम अपने साथ क्या कर रहे हो? तुम किस स्थिति में जी रहे हो? और अगर तुम होश में नहीं हो तो तुम भले ही शाकाहारी हो, तुम दूसरे तरीकों से हिंसा करोगे।

तुम्हें क्या लगता है जो लोग माँस नहीं खाते वे सिर्फ़ माँस ना खाने के कारण बड़े प्रेमपूर्ण हो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org