क्या माँस खाना गलत है?
जानवर वगैरह की परवाह छोड़ो, चाहे जानवर हो, सब्ज़ी हो या कुछ और हो, बात खाने की नहीं है। तुम यह पूछो कि जो कर रहा हूँ वह करते समय होश है मुझे?
दो ही बातें होती हैं जिनसे ज़िंदगी जीने लायक रहती है — एक होश और एक प्रेम। तुम चबाओ मच्छी, अगर प्रेम में भरे होकर चबा सकते हो तो खूब चबाओ। यह ना पूछो कि माँस खाना सही है या गलत है, तुम यह पूछो कि माँस खाते वक़्त चित्त की दशा क्या रहती है — प्रेम में भरा हुआ रहता हूँ या भीतर सूक्ष्म…