क्या मन का दमन सदा गलत है?

वास्तव में जब तक विवेक न आ जाए, दमन बहुत आवश्यक है। जब तक मन से एकाकार होकर चल रहे हो, तब तक दमन करना आना चाहिए, नहीं तो अपना ही नुकसान कर बैठोगे। आजकल की पीढ़ी दमन को महत्व नहीं देती और यह आत्मघाती है। दमन साधना के आवश्यक अंगों में से है।

विवेक के अभाव में यदि तुम्हें कभी-कभी दिखता भी होगा कि तुम कुछ गलत कर रहे हो, तो भी तुम गलत की दिशा में ही जाओगे। जो अभी भीतर से भ्रम, तमस और माया का गुलाम है, उसके लिए स्वच्छंद हो जाना बहुत नुकसानदायक है। मन के विरुद्ध जाना बहुत कष्टदायक भी होगा, पर ये आवश्यक है तुम्हारे लिए।

दमन का दूसरा अंग यह भी है, जब तुम्हें लगे कि तुम सही हो, और गुरु तुमसे कहे कि तुम गलत हो तो तुम्हारे भीतर नकार का गहरा भाव उठेगा। उस भाव का दमन कर दो। जिसको दमन के ये दोनों अंग नहीं आते, वो जीवन भर नारकीय जीवन बिताएगा। एक स्थिति आती है जब तुम्हें दमन की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती, पर वो स्थिति किसी संत की होती है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org