क्या भारत अपने सिद्धांतों के कारण पड़ोसी देशों से पिछड़ गया?
सच की निशानी होती है साहस। और जो साहसी है वो हार नहीं सकता। ये नाता तो आप जोड़ ही मत दीजिएगा कि जो सच्चा होता है वो कमजोर हो जाता है और हारने लग जाता है। मैं कह रहा हूँ जो आदमी सच्चा है वो मर तो सकता है पर हार देखने के लिए जिंदा नहीं बचेगा।
जिस सदेश का सबसे बड़ा और सबसे मान्य धर्मग्रन्थ ही कहता हो कि अर्जुन तू तो लड़ और ये सोच मत कि अंजाम क्या होगा। वो देश हार कैसे सकता है? और अगर हारा तो इसका मतलब उस देश ने गीता भुला दी थी।
सच का रास्ता ऐसा नहीं होता है कि उसपर आप ३०-४०-७० % चलकर के जित जाएंगें। सच के रास्ते पर तो पूर्ण समर्पण चाहिए। सच्चा आदमी विवेकपूर्ण होता है। उसकी बुद्धि बड़ी तीक्ष्ण हो जाती है। दुश्मन को हराने के लिए या सत्य की स्थापना के लिए वो जैसा विचार कर सकता है वैसा अधार्मिक आदमी कर ही नहीं सकता। सच के साथ हमने दो-चार बड़े दुर्भाग्यपूर्ण चित्र जोड़ दिए हैं। हमने छवि ऐसी बना ली है कि सच्चा आदमी कैसा होता है? अच्छा होता है पर बेवकूफ सा होता है।
जो कोई असक्त है, दुर्बल है वो ये साफ़ समझ ले कि वो सच के साथ नहीं है। चाहे वो कोई व्यक्ति हो या कोई देश हो। धर्म का, सच का कोई सम्बन्ध सामान्यतया प्रचलित नैतिकता से नहीं है। सच से बड़ी कोई नैतिकता नहीं होती।
भारत के लिए आगे का रास्ता ये नहीं है कि भारत सच को और अध्यात्म को छोड़ता चले। आगे का रास्ता ये है कि समझो कि वास्तविक सफलता और विजय मात्र उसे मिलती है जो सत्य के साथ होता है।
अपनी असफलताओं का ठिकरा धर्म के सर मत फोड़ें।
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