क्या प्रबोध (enlightenment) निजी अनुभव की कोई घटना होती है?

जो कुछ भी अनुभव के दायरे में आ सकता है वो अनुभव ही है न। मूल बात पर गौर करिए, सब अनुभव किसको होते है? अगर कोई कहे उदाहरण के लिये कि मुझे मुक्ति का, मोक्ष का, इन्लाइटन्मन्ट का अनुभव हुआ तो कुछ सवाल पूछने जरुरी है। किसको हुआ वो अनुभव? आपको जो भी अनुभव होते है दिन रात, उन अनुभवों को ग्रहण करने वाला कौन होता है? उसका क्या नाम है? उसी का नाम अहंकार है।

आत्मा को तो कोई अनुभव होता नहीं, आत्मा तो अद्वैत है। आत्मा को कोई अनुभव नहीं हो सकता है क्योंकि आत्मा पूर्ण है। अहंकार को ही सारे अनुभव होते है क्योंकि अहंकार अपूर्ण है, जो अपूर्ण है उसे ही अनुभव हो सकते है। और जिस तरीके से साधारणत: हम इन्लाइटन्मन्ट वगैरह की परिभाषा करते है, इन्लाइटन्मन्ट का अर्थ होता है पूर्णता मिलना।
अब हम क्या कह रहे है कि वो बचा ही हुआ है जो अपूर्ण है क्योंकि उसे अनुभव हो रहे है, अनुभव होने के लिए शर्त ही यही है कि आप में अपूर्णता होनी जरुरी है तो हम कह रहे है कि वो बचा हुआ है जो अपूर्ण है लेकिन फिर भी उसे पूर्णता मिल गयी।

आपको दिख नहीं रहा ये बात अपने आप मे कितनी विरोधाभासी है, अंतर विरोध से भरी हुई है। दुनिया में आपको सब तरह के अनुभव हो सकते है, पूर्णता का अनुभव कुछ नहीं हो सकता, सत्य का कोई अनुभव नहीं होता। लेकिन लोग चले आते वो कहते है हमें सत्य का अनुभव हुआ, हमें मुक्ति का अनुभव हुआ, हमें मोक्ष निर्वाण के अनुभव हुए, हमें इन्लाइटन्मन्ट हुआ है। जो कोई बोले उसे सत्य का अनुभव हुआ है या मुक्ति का अनुभव हुआ है, उसने ये बोलकर ही स्थापित कर दिया कि उसकी अभी साधना बची हुई है, बहुत यात्रा अभी करनी है उसे।

अध्यात्म का अर्थ है अनुभवों से मुक्ति, मुक्ति का अनुभव नहीं।

सतत साधना है अध्यात्म, अहंकार को समझना पड़ता है, अपने ही मन में प्रवेश करना होता है, अपनी ही वृत्तियों से परिचित होना होता है, यही आत्मज्ञान कहलाता है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org