क्या धर्म सिखाता है स्त्रियों का शोषण?
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अध्यात्म और संस्कृति में भेद करना बहुत-बहुत ज़रूरी है। धर्म का काम किसी तरह की संस्कृति को प्रोत्साहित करना नहीं होता। धर्म का काम आपको किसी विशिष्ट संस्कृति में दीक्षित करना नहीं होता।
धर्म का काम होता है सत्य को प्रोत्साहित करना। आप सत्य की ओर बढ़े, इसलिए आपको प्रोत्साहित करना।
लेकिन धर्मगुरु लगातार यही कर रहे हैं।
संस्कृति किसी जगह की, किसी ज़मीन की होती है। अध्यात्म कहीं का नहीं होता, वह सब जगह का होता है।
एक आम हिंदू घर में आप चले जाएँ तो जिन बातों को धर्म माना जाता है, उनका धर्म से बहुत कम ताल्लुक़ है। उनका ताल्लुक़ सिर्फ़ संस्कृति, कल्चर से है कि ऐसा चला आ रहा है, तो उसे चलने दो और उसको धर्म का नाम दे दो। उसका धर्म से संबंध क्या है?
यह जो बात है स्त्रीयाँ, पुरुष की आधीनता करेंगी। विचार करते हुए भी लज्जा आ रही है कि वेदों के ऋषियों ने ऐसी कोई बात बोली होगी। वह आपसे ऐसी कोई बात बोल सकते हैं कभी?
और ऐसे में जहां गार्गी हैं, मैत्रेयी हैं जिनसे खुद ऋचाएँ उभर कर आ रही हैं। मैं फिर बोलूँगा आप हिंदू को, मुसलमान को जिन हरकतों, जिन क्रिया-कलापों, जिन आदतों और जिन परंपराओं से पहचान लेते हैं, वह आदतें, वह क्रिया-कलाप, वह परंपराएं, धारणायें, धार्मिक नहीं होती, सांस्कृतिक होती हैं।
तुम कैसे पहचान लेते हो अभी एक हिंदू चला रहा है या अभी एक मुसलमान चला रहा? कैसे पहचान लेते हो? वेशभूषा से। वह वेशभूषा धर्म का हिस्सा थोड़े ही है भाई!
वह संस्कृति का हिस्सा है। पर उसको हीं धर्म बना दिया जाता है। नतीजा? जो वास्तविक धर्म है- वह पीछे छूट जाता है क्योंकि हम यह सोचते हैं कि अगर हमने जनेऊ धारण कर लिया तो हम धार्मिक हो गए या सर पर हमने सफेद टोपी रख ली तो हम मुसलमान हो गए। तो असली धर्म बहुत पीछे छूट जाता है। और यह बहुत दुःखद घटना घटी है धर्म के साथ।
वास्तविक धर्म को पहचानना और उसमें जीना मुश्किल होता है, साधना माँगता है, सच्चाई माँगता है, तो हमने यह बड़ा सस्ता विकल्प खोज लिया है कि ‘धर्म के स्थान पर संस्कृति’ और धर्म गुरु भी संस्कृति को ही प्रोत्साहन दे रहे हैं।
आप जिसको हिंदू धर्म समझते हैं, वास्तविक वैदिक धर्म वैसा बिल्कुल नहीं है। अगर कोई हिंदू हो जो वास्तव में वेदों का, वेदांत का अनुकरण करता हो तो वह आपको हिंदू जैसा लगेगा ही नहीं। आप कहोगे इसमें तो वैसा कुछ भी नहीं है जो आजकल के हिंदुओं में होता है, वह बिल्कुल अलग जीवन जिएगा। सच्चा हिंदू आजकल के हिंदुओं जैसा प्रतीत ही नहीं होगा।
वैदिक धर्म से ज़्यादा साफ, सुंदर, अंधविश्वास…