क्या त्यागा था बुद्ध ने? दुनिया ऐसी क्यों?
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ये बात मन को सुहाती है कि
दुकान में ही बैठे-बैठे आध्यात्मिक हो जाओ!
आदमी को बड़ा अच्छा लगता है,
चलो दुकान बची!
बाकी सब संत-महात्मा तो बता गए हैं
त्याग और साधना करनी पड़ेगी
और कोई आए और बता दे कि
नहीं-नहीं कुछ छोड़ना नहीं पड़ेगा
“जो कर रहे हो, वही करते रहो
कोई भी धंधा चला रहे हो,
चलाते रहो उसके साथ अध्यात्म भी हो जाएगा।”
तो आदमी को बड़ा सुकून मिलता है,
कहता है- “ये मिले हैं असली गुरुवर
इन्होंने कहा वही धंधा भी चलता रहेगा
और मुक्ति भी मिल जाएगी।”
तुम्हारी दुकान चले न चले, गुरुदेव की पूरी चल रही है।
जहाँ उन्होंने ये शिक्षा बाँटी कि “जो कर रहे हो करते रहो
और साथ में ध्यान कर लो
थोड़ा-सा तो मुक्ति भी पा जाओगे।”
ये बात न सिर्फ़ झूठ से भरी हुई है,
बल्कि कुटिलता से भरी हुई है।
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