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क्या ज्ञानी पुरुष भी भोगविलास करते हैं?

क्या ज्ञानी पुरुष भी भोगविलास करते हैं?

विलसन्ति महाभोगैर्विशन्ति गिरिगह्वरान्।

निरस्तकल्पना धीरा अबद्धा मुक्तबुद्धयः॥५३ ||

~ अष्टावक्र गीता

अनुवाद: स्थितप्रज्ञ पुरुष महान भोगों में विलास करते हैं, और पर्वतों की गहन गुफाओं में भी प्रवेश करते हैं, किन्तु वे कल्पना बंधन एवं बुद्धि वृत्तियों से मुक्त होते हैं।

आचार्य प्रशांत: हमारे भोग भी छोटे होते हैं। और हमें विलास से बड़ा डर लगता है। (अनुवाद पढ़ते हुए) कुछ भी उनके लिए वर्जित नहीं है। कभी ऐसा करते भी दिख सकते हैं। कभी वैसा करते भी दिख सकते हैं। कुछ भी कर रहे हो, कुछ भी न कर रहे हो, वो रहते मुक्त ही हैं। उनके बारे में कोई धारणा मत बना लेना, कोई छवि मत बना लेना। जो आम छवि है भक्त की, योगी की, ज्ञानी की, त्यागी की उन छवियों से आज़ादी दे रहे हैं अष्टावक्र। अष्टावक्र कह रहे हैं कि न यह जो वास्तविक योगी है, यह जो वास्तविक ब्रह्मचारी हैं, यह जो ज्ञानी है, यह जो स्थितप्रज्ञ है यह किसी भी प्रकार के भोग से हटता नहीं है पीछे। क्योंकि पीछे हटने का अर्थ होगा कि कहीं तो उसने डर देखा, कि कहीं तो उसने असत्य देखा, कि कहीं तो उसने ब्रह्म के अतिरिक्त कुछ और देखा। पीछे हटने अर्थ हो गया– कहीं तो उसने अपनी व्यक्तिगत रूचि या अरुचि को महत्व दिया।

जीवन जो दशा दिखाता है वह उसी दशा में जीता जाता है। जीवन यदि भोग का अवसर उपलब्ध कराता है तो वो उससे पीछे नहीं हटता। और यदि जीवन उसे बिल्कुल एक रुखा-सुखा वृत्ति का जीवन भी देता है तो उसे उससे भी कोई शिक़ायत नहीं। राज महल में भी रह लेगा, गुफ़ा में…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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