क्या गीता तब भी उतनी ही प्रचलित होती यदि अर्जुन युद्ध हार जाता

प्रश्नकर्ता: गीता में अर्जुन किस वजह से युद्ध जीते? और अगर हारते तो भी क्या गीता का महत्त्व उतना ही रहता जितना आज है?

आचार्य प्रशांत: कृष्ण अर्जुन को कभी भी जीतने का भरोसा नहीं दिला रहे हैं, बल्कि कृष्ण तो अर्जुन को जीत और हार का विचार ही न करने को कह रहे हैं। ऐसा उन्होंने बिल्कुल नहीं कहा कि ज़रूर लड़ो क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ तो विजय निश्चित है। वो कह रहे हैं कि लड़ो क्योंकि इस वक़्त लड़ना ही धर्म है तुम्हारा। गीता का महत्व इसमें बिल्कुल भी नहीं है कि कृष्ण के समर्थन या मार्गदर्शन से अर्जुन विजयी हुए। बात जीत या हार की नहीं है, बात सही युद्ध करने की है, वो भी निष्काम भाव से।

और पूछा है कि "क्या गीता का महत्व इतना ही होता जितना आज है, यदि अर्जुन हार गए होते?" गीता का महत्व तो उतना ही होता। हाँ, आपकी दृष्टि में महत्व होता कि नहीं होता, वो आप जानें। जहाँ तक गीता की बात है, गीता के मूल्य पर क्या अंतर पड़ जाना है इधर-उधर की अन्य घटनाओं से? दुनिया में तमाम जो घटनाएँ घटती हैं, उनमें संयोग का भी एक बहुत बड़ा अंश निहित होता है। तो घटनाओं का क्या भरोसा? कभी कोई भी घटना घट सकती है, संयोग की बात है। योद्धा हैं, युद्ध कर रहे हैं, क्या पता क्या हो जाए?

आवश्यक थोड़े ही है कि किसी कर्ण के ही रथ का पहिया गड्ढे में धँसेगा और फँसेगा। किसी और के रथ का पहिया भी तो फँस सकता था। न जाने कितनी घटनाएँ थीं युद्ध में जो अनापेक्षित रूप से हुईं। ऊँट इस करवट भी बैठ सकता था, उस करवट भी बैठ सकता था। अधिकांशतः पांडवों के पक्ष में ही संयोग बैठा, ये बात मात्र संयोग की है, श्रीकृष्ण की कृपा की नहीं है। श्रीकृष्ण की कृपा के रहते हुए भी ऊँट उस करवट भी बैठ सकता था। पांडवों की हार भी हो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org