क्या खोज रहे हैं हम

प्रश्नकर्ता: क्या खोज रहे हैं हम?

आचार्य प्रशांत: यह जितना कुछ हम देखते हैं, यह जो कुछ भी हम अनुभव करते हैं, सुनते हैं, इसका अनुभव हमें यूँ ही नहीं हो रहा। थोड़ा गौर करेंगें तो आपको भी दिखेगा। कुछ भी आपको व्यर्थ ही नहीं दिख रहा, अकारण ही नहीं अनुभव हो रहा। कोई भी ध्वनि, कोई भी स्पर्श, कोई भी विचार आप तक निष्प्रयोजन ही नहीं पहुँच रहा। हम अपने सब अनुभवों में कुछ खोज रहे हैं। वास्तव में यह कहना भी ठीक नहीं है कि हम अनुभावों में कुछ खोज रहे हैं, चूँकि हम खोज रहे हैं इसलिए हम अनुभव ले रहे हैं, बात समझिएगा।

चूँकि हम खोज रहे हैं इसलिए हम अनुभव ले रहे हैं। सब अनुभव किसके होते हैं? अनुभवों के लिए क्या चाहिए? विषेयता, जो हम हैं ही। और क्या चाहिए अनुभवों के लिए? विषय। चूँकि हम खोज रहे हैं इसीलिए एक विषय से दूसरे विषय तक भटकते रहते हैं। भाई! खोजना है तो कहाँ खोजोगे? किसी विषय में ही खोजोगे ना? मुझे कुछ खोजना है तो कहाँ खोजूँगा? तो उस कमरे में खोजूँगा, उस कमरे में खोजूँगा, अपनी जेब में खोजूँगा, किसी और से जाकर कुछ पूँछूँगा, छत पर खोजूँगा, नीचे खोजूँगा। यही सब तो करूँगा?

तो खोजने के लिए क्या चाहिए? विषय। और जिस भी विषय के पास जाओगे वह विषय तुम्हारा क्या बन जाता है? अनुभव। जेब में हाथा डाला कुछ अनुभव होगा, छत पर जाओगे कुछ अनुभव होगा, एक कमरे में जाओगे कुछ अलग अनुभव होगा, यह सब होता है न? चूँकि हम खोज रहे हैं इसीलिए हमे अनुभव हो रहे हैं।

तो सब अनुभवों के आधार में एक खोज बैठी हुई है। और सारे अनुभव कहाँ पर हैं? इस जगत में। माने जगत के आधार में ही खोज…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org