क्या खाली दिमाग शैतान का घर होता है?
शैतान का घर, शैतान का घर होता है। ‘खाली दिमाग’ शैतान का घर नहीं होता। शैतान, शैतान के ही घर में प्रवेश करता है। तुम्हारे घर में कौन आ रहा है, ये इस पर निर्भर करता है कि तुम कौन हो। तुम शैतान हो, तुम्हारे घर में शैतान आएगा। तुम साधु हो, तुम्हारे घर में साधु आएगा।
ये सब लोकोक्तियाँ हैं। इनके पीछे आवश्यक नहीं है कि बोध की गहराई हो।
मन के केंद्र पर कौन बैठा है, वो निर्धारित करता है कि मन की सामग्री कैसी होगी।
मन के केंद्र पर शैतान बैठा है, तो दुनिया भर के शैतानों को आमंत्रित करेगा वो।
मन के केंद्र पर साधु बैठा है, तो वहाँ साधुओं की भीड़ रहेगी।
तुम कौन हो? तुम जो हो, उसी अनुसार तुम्हारे मन में विचार चलेंगे।
यहाँ बात खाली होने की, या भरे होने की नहीं है। यहाँ बात, केंद्र में कौन है, उसकी है। तुम क्या बने बैठे हो? ‘अहम’ की जो तुम्हारी परिभाषा होगी, मान्यता होगी, वो तुम्हारा संसार निर्धारित कर देगी।
और बिलकुल ठीक कहा, “भरे दिमाग में भी तो शैतान ही चलते हैं।” जब घर ही शैतान का है, तो उसमें कौन भरे नज़र आएँगे? शैतान ही शैतान। तो जो लोग सोचते हैं कि — खाली दिमाग में शैतान होता है, और भरे दिमाग में भगवान होता है — वो बिलकुल ही नासमझ हैं।
खाली हो, या भरा हो, फ़र्क नहीं पड़ता। बात ये है कि घर किसका है? शैतान भी नाम -पट्टिका देखकर अंदर आता है। पता देख लेता है। और जब बाहर देख लेता है कि लिखा हुआ है — ‘एस. चक्रबोर्ती’, तो…