क्या कृष्ण भी पापी हुए?

निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीति: स्याज्जनार्दन |
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: || १, ३६ ||

हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा।
—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १, श्लोक ३६

प्रश्नकर्ता: अर्जुन गीता के छत्तीसवें श्लोक में कह रहे हैं कि आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा, एक तरफ तो आतताई कह रहे हैं और दूसरी तरफ कह रहे हैं कि पाप भी लगेगा।

आचार्य प्रशांत: आप उस शब्द पर ध्यान नहीं दे रहे हैं जिस पर देना चाहिए, ‘हमें’। अर्जुन ने कृष्ण को भी लपेट लिया। वो यह नहीं कह रहा है कि आततायियों को मारकर 'मुझे' पाप लगेगा। उसकी चाल की बारीकी देखिए। वो कृष्ण को कह रहा है कि, "देखिए, ये सामने जो हैं, ये भले ही दुष्ट हैं, आतताई हैं, पर इन्हें मारा तो हमें पाप लगेगा। मैं ही अकेला नर्क नहीं जा रहा हूँ, आप भी जा रहे हैं।"

इतना ही नहीं है। आने वाले अध्याय में आप पढ़ेंगे कि अर्जुन कृष्ण को स्पष्ट कह रहा है कि "कृष्ण, आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं।” सीधे-सीधे इल्ज़ाम भी लगा दिया कि कृष्ण, आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं।

जो आदमी कमज़ोर पड़ गया हो, वो कुछ भी कर सकता है। जो बात सोची नहीं जा सकती, वो कह सकता है। और कमज़ोरी तो एक ही होती है; आत्मबल का अभाव। जो अपने आप को देह मानकर जी रहा है, उसको आत्मबल कहाँ से मिलेगा? तो फ़िर वो तमाम तरह की बेकार की बातें, उलटे-पुलटे तर्क, बेहूदे आक्षेप सब लगाएगा।

एक विसंगति तो आपने देख ही ली कि एक ही साँस में कह रहा है कि वो सब आतताई हैं और यह भी कह रहा है कि इनको मारकर पाप लगेगा, पर उससे बड़ी विसंगति से आप चूके। मैंने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org