क्या एक साथ रहने से प्यार बढ़ेगा?
आचार्य प्रशांत: नहीं देखिये, ये कोई नियम नहीं हो सकता है, ये बाध्यता नहीं हो सकती। बात सिर्फ इतनी सी है कि डर दो लोगों को निकट रखे तो भी उनमें बहुत दूरी रहेगी, और डर के मारे दो लोग दूर हो गए हो तब तो दूरी है ही। तो आप किस केंद्रे से संचालित हो रहे हें, बात उसकी है।
बहुत सारे लोग ज़िन्दगी भर साथ रहते हैं क्योंकि दूर होना उनके लिए अकल्पनीय होता है, दूर होने में बड़ी असुरक्षा है, डर है। उस साथ रहने में कोई वास्तविक घनिषता, निकटता थोड़ी है, तो आप किस वजह से, आप किस केंद्र से चलकर के अपने जीवन के निर्णय ले रहे हैं, वो देखना आवश्यक है। आप एक कमरे में दो लोगों को बंद कर दें, वो अन्तरंग शत्रु बने रहेंगे। साथ-साथ रहेंगे, उठेंगे-बैठेंगे, खाएँगे-पियेंगे, हो सकता है पूरा एक संसार बसा लें, लेकिन फिर भी दिलों की दूरियाँ तो कायम ही रह जाएँगी ना। वो बात दोनों के बीच की नहीं है , वो बात दोनों की आतंरिक बात है की दोनों लोग कैसे हें — क्या ये भी डर पे चलता है, और ये भी डर पे चलता है? अगर ये भी डर पे चलता है, और ये भी, तो उनका रिश्ता भी डर का होगा।
प्रश्नकर्ता: अगर हम थोड़े ईमानदार हैं, तो ये बात बहुत साफ़-साफ़ दिखती है कि जैसे पाँच-छः साल हो गए किसी इंसान के साथ रहते हुए और जब आप उसको वास्तव में थोड़ा देखते हो तो आपको लगता है, मूलतः आप उसको अपने ही फिल्टर से देखते हो। आपको उस व्यक्ति के बारे में कोई भी अवधारणा नहीं है, तो ये एक बहुत असफलता का भाव भी देता है। जैसा आपने कहा कि अगर डर के से संचालित करेंगे तो कभी पास नहीं जा पाएँगे।