क्या इंसान समाज के बिना नहीं जी सकता?

कौन-सा धर्मग्रंथ कहता है कि परमात्मा ने समाज बनाया? हमने तो यही पढ़ा था कि परमात्मा ने इंसान बनाया। और हमने तो नहीं सुना कि कोई उपनिषद बताता हो कि समाज को मोक्ष कैसे मिलता है?

दुःख भी इंसान का है और मुक्ति भी इंसान की है, ये समाज क्या चीज़ है?

तुम्हारा निर्माण है समाज, जो कुछ तुम निर्मित करते हो वो तुम्हारे लिए होता है, तुम उसके लिए नहीं होते हो।

मनुष्य ने समाज निर्मित किया है, लेकिन खेद की बात ये है कि हम वहाँ पहुँच गए हैं जहाँ समाज मनुष्य को निर्मित करने लगा है।

आज बहुत लोग हैं, जो परमात्मा से ज़्यादा समाज का निर्माण हैं। और ऐसे लोग, लोग कहलाने के काबिल नहीं।

हम अपने ही निर्माण के गुलाम हो गए हैं। हमारी ही निर्मित्ति, हमारे सिर चढ़ के बोल रही है।

ऐसा होने मत दो!

तुम तय करो की तुम्हें क्या चाहिए, और फिर रचो ऐसा समाज जो तुम्हारे उद्येश्यों की पूर्ति में सहायक हो। तुम गौर से देखो तुम्हें क्या चाहिए और अगर ये गौर से देख लोगे तो अपनेआप तुम्हारे आसपास जो समाज है वो बदलने लगेगा क्योंकि समाज भी एक थोड़े ही होता है, अनंत समाज हैं। जैसे तुम हो, वैसा तुम अपना समाज चुन लेते हो।

तुम ठीक होने लग जाओ, तुम्हारे जो इर्दगिर्द दुनिया है, वो बदलने लग जाएगी।

भूलना मत कभी भी, पहले तुम हो, फिर समाज है।

समाज को अपने सिर पर मत बैठा लेना।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org