कौन है गीता का पात्र?

कौन है गीता का पात्र?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। अभी का जो संदर्भ है, कृष्ण भगवान जो अर्जुन को समझा रहे हैं कि, ‘जब हम कर्म कर रहे हैं अर्जुन, तो तुम क्यों नहीं कर रहे?’ तो ये बात मुझे समझ में नहीं आयी कि उनका निष्कामकर्म का प्रयोजन क्या है? अहम् को — जो सत्य की खोज में रहता है या सत्य की तरफ़ बढ़ता है — जो शक्ति चाहिए सत्य की तरफ़ बढ़ने के लिए वो प्रदान करना; क्या ये कृष्ण के निष्कामकर्म का प्रयोजन है?

आचार्य प्रशांत: देखिए, आपने अभी माईक पकड़ रखा है, आपकी गर्दन एक ओर को झुकी हुई है, आपकी आँखों में कौतूहल है; आप जानते हैं आप क्या चाह रहे हैं? आप जिसको चाह रहे हैं उसको ही कृष्ण का नाम दिया गया है। तो कृष्ण को चाहने की वजह से ही अभी आप गति कर रहे हैं न! ये प्रश्न एक तरह की गति है, क्रिया है। अभी करी न? ये क्यों प्रश्न पूछा है आपने? आपको समाधान चाहिए; उसी समाधान का नाम कृष्ण है।

तो कृष्ण कह रहे हैं, ‘मैं ही तो सारी गति करा रहा हूँ। मैं न होता, तुम्हें मेरी चाहत न होती, तो तुम ये सवाल नहीं पूछते।’ तो ये सवाल किसने पुछवाया? तो इसलिए कहा जाता है कि जो कुछ भी हो रहा है, उसे करवाने वाले कृष्ण ही हैं।

देखो उन्होंने सवाल पुछवा दिया! अब अगर मैं जवाब दूँगा तो वो जवाब भी किसलिए है? ताकि कोई समाधान मिल सके और समाधान का ही दूसरा नाम क्या है? कृष्ण। तो देखो कृष्ण ने जवाब भी दिलवा दिया! कृष्ण ही पूछ रहे हैं, कृष्ण ही जवाब दे रहे हैं; अहंकार फ़ालतू फुदक रहा है, उसको लग रहा है, ‘मैं कर रहा हूँ।’ देखो कैसे दिख रहे हैं! (प्रश्नकर्ता की तरफ़ इशारा करते हुए)।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org