कौन कमज़ोर कर रहा मेरे देश की युवा ताकत को
--
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने पाया कि इस १२-१३ साल की अवधि में ही टीनएजर्स में और जवान लोगों में डिप्रेशन के मामले ५२ प्रतिशत से ६३ प्रतिशत तक बढ़े हैं। बहुत चौकाने वाला आंकड़ा है ये। क्यों डिप्रेशन इतने ज़बरदस्त तरीके से फैला है युवाओं में और किशोरों में, टीनेजर्स में? तो स्टडी कहती है कि संभवतया कारण है सोशल-मीडिया। प्रोफेसर जीन ट्वेंगे हैं, उन्होंने किताब लिखी है जिसका उन्होंने शीर्षक दिया है, “कॉन्फिडेंट, असर्टिव एंड एंटाईटेल्ड एंड मोर मिसरेबल देन एवर बिफोर”। उसमें उन्होंने बताया है ग्रेट इकोनोमिक डिप्रेशन था १९३० का, उस समय भी तनाव के, एंज़ायटी के जो स्तर थे युवाओं में, उससे भी ५ गुना ज़्यादा तनाव है आज के युवा में। स्थिति ये है इस समय कि हर १०० मिनट में डिप्रेशन के कारण एक किशोर, एक टीनएजर आत्महत्या कर रहा है। २० प्रतिशत टीनएजर्स कभी-न-कभी डिप्रेशन से होकर गुज़रे ज़रूर हैं। आत्महत्या की दर १९९० के दशक में कम हो रही थी और २००० के बाद दुबारा बढ़ गई है। इतनी बढ़ गई है कि १५ से २४ आयु वर्ग के लोगों में, किशोरों में ये मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
दो तरीकों से तो सोशल-मीडिया ही ज़िम्मेदार है:
पहला, सोशल-मीडिया पर टीनएजर को दूसरों की बहुत ग्लोरीफाइड और नकली इमेज या छवि दिखाई जाती है और फिर उसके ऊपर दबाव पड़ता है कि वो अपनी भी एक बड़ी सुंदर, ताकतवर और नकली छवि प्रदर्शित करे। ये जो नकली छवि होती है ये ज़िन्दगी की ठोकरों का, ज़िन्दगी के सवालों का सामना कर नहीं पातीं। और जब वास्तविक जीवन से पाला पड़ता है तो ये छवि टूट जाती हैं। जब ये टूटती है छवि तो बड़ा दुःख होता है और जो युवा है, टीनएजर, वो फिर कई तरीके के रोगों से ग्रस्त हो सकता है, डिप्रेशन में जा सकता है। ऑनलाइन आप अपना एक पर्सोना बनाकर रखते हो जिसमें आप कूल हो, कॉन्फिडेंट हो, आउटस्पोकन हो, और जब आप ज़िन्दगी में उतरते हो, सड़क पर उतरते हो, तो ये पर्सोना बिलकुल ध्वस्त हो जाता है। जिसका नतीजा होता है कि आपकी सेल्फ-एस्टीम, आपका आत्मसम्मान बिलकुल बिखर जाता है, और आप मानसिक रूप से बहुत चोट पाते हो।
दूसरा तरीका जिससे सोशल-मीडिया टीनएजर्स को तबाह कर रहा है, वो है इन्फ्लुएंसर्स का। बहुत सारे मीडियोकर लोग होते हैं जो पाते हैं कि ज़हरीले शब्द, विचार और छवियाँ बेचकर, प्रचारित करके, वो भी ज़िन्दगी में सफल हो सकते हैं। ये सफलता उनको वरना मिलनी नहीं थी। तो फिर वो जल्दी से प्रसिद्धि और पैसा दोनों अर्जित करते हैं ज़हरीली धारणाएँ और ज़हरीले खयाल और ज़हरीले तरीके का व्यवहार प्रचारित करवा के युवाओं में और टीनएजर्स में। ये जो इन्फ्लूएंसर्स होते हैं ये रोल मॉडल बन जाते हैं ये दिखाकर के कि देखो सस्ते और घटिया तरीकों का इस्तेमाल करके भी सफलता पायी जा सकती है। तो…