कोरोना वाइरस, भगवान, और धर्म

कोई ईश्वर, कोई भगवान नहीं बैठा है जिसको मनुष्यों पर बीमारियाँ भेजने में रुचि हो, या मनुष्यों के वाइरस और बैक्टीरिया अपनी तरफ़ खींच लेता हो, सोख लेता हो, लोगों को जादुई तरीक़े से बीमारियों से मुक्ति दिला देता हो। तो इस तरह की बातें करके तो हम इस संक्रमण को और फैलाने का ही काम कर रहे हैं।

और वास्तव में इसी तरह की बातों के कारण धर्म, धर्म का पूरा क्षेत्र ही इतना बदनाम हो गया है। जो भी फिर थोड़े भी पढ़े-लिखे लोग हैं, थोड़े भी बुद्धिजीवी हैं, वो कहना-मानना शुरू कर देते हैं कि — धर्म का मतलब ही है अंधविश्वास, और बुद्धिहीन तरीक़े के तर्क और मान्यताएँ और जीवन।

तो यह सोचना कि अगर आप पूजा के लिए या प्रार्थना के लिए या नमाज़ के लिए इकट्ठा हो रहे हैं, तो कोई ईश्वर या कोई दैवीए ताक़त आपको वाइरस के संक्रमण से बचा देगी, ये बात ग़लत ही नहीं है, मूर्खतापूर्ण ही नहीं है, ज़बरदस्त रूप से ख़तरनाक है। क्योंकि जब आपको संक्रमण लगता है, तो वो सिर्फ़ आपके लिए निजी कष्ट की बात नहीं होती, आप एक औज़ार बन जाते हैं, आप एक माध्यम बन जाते हैं, जिसके ज़रिए से ये वाइरस बहुत और लोगों तक पहुँच सकता है।

तो आपको संक्रमण लगेगा या नहीं लगेगा, यह कोई आपका निजी मामला नहीं है।

अब ये आपकी सामाजिक ज़िम्मेदारी है कि आप अपनेआप को संक्रमित ना होने दें।

और अगर आप उस सामाजिक ज़िम्मेदारी को पूरा नहीं कर रहे हैं, आप उस सामाजिक ज़िम्मेदारी की उपेक्षा कर रहे हैं, अगर आप धर्म इत्यादि के नाम पर किसी समूह में, जत्थे में, मेले में, या कहीं और इकट्ठा

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org