कोई तरीका है क्या रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भय से मुक्त रहने का?

दिल में अगर सच्चाई के लिए श्रद्धा है, तो अनगिनत तरीके हैं। हर तरीका उसी क्षण की पैदाइश होता है जिस क्षण भय आघात करता है। मैं कोशिश करूँगा कुछ तरीके सुझाने की, सारे तरीके नहीं सुझा पाऊँगा, क्योंकि अनगिनत हैं!

भय आये, तो पूछिए अपने आपसे कि भय जो कुछ भी मुझे कह रहा है, जो भी कहानी सुना रहा है, वो कहानी अगर वास्तव में सच्ची है भी, तो भी क्या? भय ने कहा, ये ये नुक़सान हो जाएगा, और हो सकता है कि हो भी जाए। हम नहीं कह रहे हैं कि नहीं होगा। मान ली तुम्हारी बात कि हो सकता है आज शाम तक हमें फलाना नुक़सान हो जाए, हाँ, हो गया!

तो भी क्या? क्या बिगड़ जाएगा?

आप भय से पूछ लीजिये, “तू चार दिन पहले भी आया था, तूने यही सारी बातें करी थीं। तू ही है ना वो? हम जैसे ये चार दिन जी गए, वैसे आगे भी जी जाएँगे।”

भय आ के बोले, तुमसे ये छिन जायेगा।

तुम भय से बोलो, “भाई! ज़रा रुकना तू वो तो ले ही जा, तू ये भी साथ में ले जा, और आईन्दा मत आना। तू जो-जो धमकियाँ देता है, तू अपनी सारी धमकियाँ पूरी ही कर ले। धमका मत। तुझे जो चाहिए ले जा। हम उसके बाद भी हैं।”

आप कहेंगे, ये तो बड़ी हृदयहीन बात हुई, जो कुछ हमें प्यारा है, भय हमें उसी को ले के धमकाता है। भय कहता है ये छीन ले जाऊँगा, और आप हमें कह रहे हैं कि भय से कहो कि छीन ले जाए?

एक बात समझिये साफ़-साफ़:

जो कुछ भी भय आपसे छीन सकता है, जो कुछ भी स्थितियाँ, घटनायें, या समय आपसे छीन सकता है, उसको आप बचायेंगे भी कहाँ तक? कहाँ तक बचाओगे?

जो कुछ भी पक्का है कि आपसे छिनेगा, क्या वो वास्तव में आपका है भी?

अगर आप के पास कोई ऐसी चीज़ है, जो तय है कि छिन जाएगी, तो वो चीज़ आपकी तो नहीं है! या तो वो उधार की है या चोरी की है।

आपके घर में एक चीज़ रखी है जो पक्का है कि घर से चली जानी है, क्या वो चीज़ आपकी है? या तो वो उधर की है, या आप ले कर के आएं हैं कुछ दिनों के लिए, किराये पर ली है। जब किराये पर ली है तो आपको हक़ क्या है उसे अपना मानने का? या फिर वो चीज़ चोरी की है।

आप उस पर जबरन हक़ जमाये बैठे हैं और पुलिस आपकी तलाश में है। कि जिस दिन आप हथ्थे चढ़े उस दिन आप से वो चीज़ भी छीन ली जाएगी और आपकी आज़ादी भी जाएगी।

आप ऐसी चीज़ों से दिल लगा क्यों रहे हो, जो आपकी है नहीं?

उन्हीं चीज़ों को ले कर के तो भय आप पर हावी होता है।

जो वास्तव में आपका है, उसको ले कर के आपको कौन डरा सकता है। ये गलती मत करो। जो तुम्हारा नहीं है, उसको ‘मैं’ से मत जोड़ो। उससे ममता मत बैठाओ। तुम सिर्फ दुःख तैयार कर रहे हो।

और निराश होने की ज़रुरत नहीं है, बहुत कुछ है जो तुम्हारा है।

पर उसका पता तो तब लगे ना, जब उस सब से ज़रा तुम्हें मुक्ति मिले जिससे बंधे बैठे हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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