कॉलेजी शिक्षा ज़्यादा ज़रूरी, कि आध्यात्मिक शिक्षा?

दुनिया की समझ इसीलिए होनी चाहिए ताकि तुम दुनिया में ही फँसकर न रह जाओ।

ज्ञान आज़ादी देता है।

दुनिया का तुम्हें ज्ञान होगा, दुनिया से आज़ादी मिलेगी।

नहीं तो तुम्हें दुनिया में ही ऐसे-ऐसे अजूबे नज़र आएँगे, कि सत्य की तुम्हारी साधना वहीं रुक जाएगी।

जो लोग दुनिया को नहीं समझते, जानते हो कि धर्म के तल पर भी वो कैसे-कैसे मात खाते हैं? किस्सा कहा जाता, मैं जानता नहीं, मैं तो उस समय था नहीं। किस्सा कहा जाता कि ईसाई मिशनरी जब हिन्दुस्तान आए, तो जो बेचारे अनपढ़-ग़रीब लोग थे, ख़ासतौर पर कबिलियाई, उनको प्रभावित करने के लिए वो उनको कई बातें बोलते। वो बातें उन लोगों की समझ में न आतीं, तो फिर वो तरह-तरह के चमत्कार दिखाते।

ईसाई मिशनरी गाँव में जीप लेकर जाते। फिर वो कबीले वालों से कहते, “अपने देवता का नाम लो,” वो लेते। फिर पूछते, “कुछ हुआ?” वहाँ कुछ नहीं होता। फिर वो कहते, “अब यीशु मसीह का नाम लो।” कबीले वाले जब यीशु मसीह का नाम लेते तो ईसाई मिशनरी पीछे से जीप का हॉर्न बजा देते। फिर वो कहते, “देखो तुम्हारे देवता का नाम लेने पर कोई आवाज़ नहीं आई। और यीशु मसीह का नाम लेने पर ऊपर से आवाज़ आई।” कबीले वाले ये सुनकर चकित हो जाते, और फिर मिशनरी उन सबको अपने पीछे-पीछे चर्च ले जाते।

तो जो दुनिया को नहीं समझता वो धर्म के तल पर भी मात खाता है, उसको धार्मिक आधार पर भी बेवक़ूफ़ बना दिया जाता है। अब मुक्ति कैसे मिलेगी? तो दुनिया को समझना इसलिए ज़रूरी है।

लेकिन मैं ये भी कह रहा हूँ कि ज़रूरी नहीं है कि औपचारिक शिक्षा से ही दुनिया को समझो। ये सब जो हमारे स्कूलों-कॉलेजों-विश्वविद्यालयों से उत्पादित होकर निकल रहे हैं छात्रजन, ये दुनिया को क्या ख़ाक समझते हैं? दुनिया को समझने का बराबर का, बल्कि श्रेष्ठतर तरीका है कि तुम स्वाध्याय करो। ख़ूब पढ़ो-ख़ूब पढ़ो। आज इंटरनेट पर सब उपलब्ध है। पहले इनसाइक्लोपीडिया के लिए तुम्हें जाना पड़ता था, किसी लाइब्रेरी में, आज विकिपीडिया है, और गूगल है।

ये मोबाइल फोन है तुम्हारे हाथ में, जिसके माध्यम से तुमने सवाल भेजा था, वही मोबाइल फोन तुम्हारी मुक्ति का भी साधन बन सकता है। इस्तेमाल करना सीखो। उस मोबाइल फोन पर चाहो तो अश्लील सामग्री देखते रहो, या ज्ञान बढ़ाओ, गूगल करो, तमाम तरह के ऑनलाइन कोर्स कर सकते हो। विकिपीडिया तो है ही। उसी मोबाइल फोन का इस्तेमाल तुम अपनी मुक्ति के लिए कर सकते हो। पर दुनिया को जानो ज़रूर। औपचारिक शिक्षा दुनिया के बारे में तुम्हें कुछ बताती है। जितना बताती है, उतना पर्याप्त भी नहीं है। तुम औपचारिक शिक्षा से ज़्यादा जानो।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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