कैसे हो मन की वृत्तियों से मुक्ति?

प्रश्न: क्या ध्यान में वृत्तियों को पकड़ा जा सकता है?

आचार्य प्रशांत: उससे ज़्यादा सही शब्द ध्यान है या ईमानदारी है। वृत्ति तो हर समय अपना ज़ोर दिखाती ही रहती है न? उसके लिए, उसको पकड़ने के लिए, ईमानदारी ज़्यादा चाहिए। तुमने देखा नहीं है, कई बार कोई कुछ कर रहा होता है, आसपास वाले सब को दिख रहा होता है कि ये तो आदत है इसकी, ये तो ऐसा ही है! उसको ही नहीं दिख रहा होता। अब इसके लिए ध्यान क्या चाहिए? ये बेईमानी है एक तरह की न? अड़ोस-पड़ोस सबको दिख रहा है, और तुम कह रहे हो, तुमको ही नहीं दिख रहा। तो ऐसा तो नहीं है कि दिख नहीं रहा होगा। वृत्ति को हम कहते हैं, छुपी हुई है, पर वो इतनी तगड़ी होती है कि हर समय सब कुछ उसी से हो रहा होता है। तो कोई छुपी हुई चीज़ हो, उसको बाहर लाने के लिए ध्यान चाहिए, ऐसा तो शायद कहा जा सकता है। वृत्ति छुपी हुई है कहाँ?

घूम फिर कर सारी बात, वही जो तुमने सवाल कहा था ना, “कि क्या ये मत्वपूर्ण है?” उसपर आ जाती है। ऐसी शिक्षा हो गयी है मन कि कुछ बातों को महत्वपूर्ण कहने में, के उसको वही अब दिखाई पड़ता है। मैं जहाँ तक देख पा रहा हूँ, मुझे तो यही दिखाई पड़ता है कि कोई और तरीका है नहीं, पढ़ने के अलावा, सतसंग के अलावा! क्योंकि अगर एक बार मन को ये बात बता दी गयी न, कि क्या महत्वपूर्ण है, मन उधर को ही भागेगा। वो जो कर रहा है, वो उसके लिए महत्वपूर्ण है। वो वही है जिसके लिए वो महत्वपूर्ण है। वो कौन है, जिसके लिए ये सब महत्वपूर्ण है? आप जब तक मन को किसी दूसरी दिशा में अनुप्रेरित नहीं करेंगे, वो वही सब मानता रहेगा जो है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org