कैसे सिलें फटा हुआ मन?

इन्सान दो है। ये जो पूरी बात हमें बार-बार समझा के कही गयी है, अहं और आत्मा की, इससे ही ये स्पष्ट हो जाना चाहिए कि इन्सान दो है।

एक तरफ तो हम शरीर हैं। वो शरीर, जो इन्द्रियों से दिखाई पड़ता है, जिसके होने के साफ़-साफ़ इन्द्रियगत प्रमाण उपलब्ध हैं। और दूसरी तरफ हम कुछ और हैं जो दिखाई नहीं पड़ता, पर दिन प्रतिदिन की अकुलाहट से अपने होने का एहसास कराता है।

अब ये इन्सान की स्वेच्छा पर है कि उसे अपने किस आयाम की ज़्यादा फ़िक्र करनी है, उसे अपने किस आयाम पर जीना है।

आप चाहें तो अपने आप को शरीर घोषित कर सकते हैं। फिर शारीरिक स्वास्थ्य का ख़याल रखें, शरीर के लिये सुखसुविधायें जुटायें। भौतिक जितने भी साधन हो सकते हैं सबको एकत्रित करें और उनका भोग करें।

या फिर अपने आप को वो अकुलाहट मान सकते हैं जो भीतर ही भीतर मौजूद है, सूक्ष्म है। चूँकि वो भीतर है, अपने आप को साफ़-साफ़ प्रमाणित नहीं कर पाती, इसलिये उसकी उपेक्षा की जा सकती है। ये चुनाव करने पड़ते हैं।

अब अगर आपने चुन लिया कि आप देह ही हैं, तो आप दूसरे की भी चिंता किस तल पर करेंगे? आपको दूसरे की भी देह की खूब फ़िक्र रहेगी। मैं नहीं कह रहा हूँ कि आपको दूसरे की फ़िक्र नहीं रहेगी। आपको दूसरे की फ़िक्र रहेगी, लेकिन किस तल पर? और अपनी दॄष्टि में आप बिल्कुल ठीक होंगे। आप दूसरे को यही कहोगे कि मैं तुम्हारी बेहतरी के लिये काम कर रहा हूँ, मुझे तुम्हारे हित की बड़ी चिंता है। लेकिन आप बंध गए होंगे व्यक्ति की अपनी ही परिभाषा से। आपने व्यक्ति को परिभाषित ही कर दिया है देह के रूप में। खुद भी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org