कैसे लोगों की दोस्ती मेरे लिए अच्छी?

हम सब ये चाहते हैं की निर्दोष रहें। तो ऐसे में वो स्तिथि हम सबको सुहाती है जिसमें हमे ये एहसास हो कि हम में कोई खोट नहीं, हम में कोई दोष नहीं, क्योंकि निर्दोषिता सवभाव है ना। ऐसा मौहौल जो तुम्हें ये एहसास करा दे, थोड़ी ही देर को सही, भ्रम रूप में ही सही कि तुम पूरे हो, तुम बढ़िया हो, तुम पूर्ण हो, परफेक्ट हो, तुम में कोई दोष नहीं, वो तुम्हें हमेशा अच्छा लगेगा।

लेकिन उसमें एक धोखा हो सकता है, धोखा क्या है? पूर्ण हो और अपनी पूर्णता में खेल रहे हो, नहा रहे हो, मस्त हो, वो एक बात है और अपूर्ण हो, और पूर्णता का भ्रम पाले हुए हो, दूसरी बात है। अगर अपूर्ण हो, तब तो अच्छा यही है कि तुम्हारे सामने ये उदघाटित कर दिया जाए कि अपूर्णता है। लेकिन जो कोई भी तुम्हें ये बताए कि तुम में अभी कोई अपूर्णता है उसका दायित्व ये भी है की तुम्हें ये भी बताए कि अपूर्णता झूठी है, तुम्हारा सवभाव तो परफेक्शन ही है, सवभाव तो पूर्णता ही है। दोनों काम करने पड़ेंगे।

वो भी गलत है जो तुमसे कह दे कि नहीं नहीं, तुम में कोई दोष नहीं है, और वो भी गलत है जो तुमसे कह दे कि तुम में सिर्फ दोष ही दोष है। कबीर ने इसी बात को बड़े सीधे तरीके से कह दिया है, “गुरु कुम्हार, शिष्य कुम्भ है। घड़ी-घड़ी काढ़े खोंट, अंदर हाथ सहार दे और बहार मारे चोट।” दोनों काम एक साथ करने हैं , कौन से दो काम? “अंदर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट” जो कोई तुम्हें चोट ही न मारे, वो भी तुम्हारे लिए भला नहीं, क्योंकि अगर चोट ही नहीं मार रहा तो तुम्हे लगेगा कि हम जैसे हैं बढ़िया हैं, फिर किसी तरीके का कोई बदलाव, कोई सुधार कभी होगा नहीं। और वो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org