कैसे जानें कि प्यार सच्चा है या नहीं?
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, हमारे जो ये सम्बन्ध होते हैं, उसमें हम ये दावा तो करते हैं कि बेशर्त प्रेम है, पर एक इंसान कोशिश करता रहता है कि प्रेम सम्बन्ध टूटे नहीं और एक इंसान बार-बार निराशा से सम्बन्ध तोड़ देता है, कि मुझसे और हो नहीं रहा। वो ये दावा करता है कि नहीं मैं भी प्यार करता हूँ, पर वो अंततः सम्बन्ध तोड़ देता है। तो क्या वो प्यार करता है? और जो बार-बार कोशिश करे जा रहा है, वो भी कभी तो निराश हो ही जाएगा, पर वो प्यार करता है। आपको मेरा प्रश्न समझ में आया!
आचार्य प्रशांत: नहीं समझ में आया, पर फिर भी बोल दूँगा। तुम लोगों की बातें ऐसी होती हैं कि ख़ुदा न समझे, मैं कैसे समझूंगा?
(श्रोतागण हँसने लगते हैं)
तो सोनाली का सवाल, मेरी छोटी सी समझ के अनुसार ये है कि क्या प्रेम में धैर्य अनंत होता है, या कोई बिंदु आता है जहाँ पर आदमी डोर तोड़ भी देता है, साथ छोड़ भी देता है, और अगर कोई साथ छोड़ने की बात करे तो क्या इसका अर्थ है कि उसका प्रेम अवास्तविक था, नकली था। स्पष्ट है सबको? बोलूँ?
पकड़े रहना या छोड़ देना ये दोनों व्यवहार की बातें हैं, और व्यवहार तो व्यवहार होता है; व्यवहार को लेकर के कोई आत्यंतिक सूत्र नहीं दिया जा सकता। जैसे कि आपको कोई सूत्र दे कर नहीं बताया जा सकता कि हाथ ऐसे ही चलना चाहिए (आचार्य जी हाथों को सामने बढ़ाते हुए) या ऐसे ही चलना चाहिए(आचार्य जी हाथों को बाईं ओर बढ़ाते हुए), या मुट्ठी भींचे, या हथेली खुले। बात ह्रदय की है, केंद्र की है, स्रोत कीㄧमाने शुरुआत की है।
पकड़े हुए ही क्यों हो? छोड़ने की प्रेरणा कहाँ से आ रही है? बहुत हैं जो आजन्म पकड़े रहते हैं, वो कहते हैं “हम वफ़ादारी निभा रहे हैं, हम-सा प्रेमी दूसरा नहीं होगा।” पकड़े रहने का अर्थ आवश्यक रूप से वफ़ादारी नहीं होता। तुम पकड़े इसलिए भी रह सकते हो क्योंकि डरते हो, पकड़े इसलिए भी रह सकते हो क्योंकि पकड़ने में सुविधा है, या पकड़ने की आदत लग गई है। सिर्फ इसलिए कि तुमने अपने जीवन में किसी को स्थापित ही कर लिया है, ये तो नहीं कहा जा सकता कि हृदय प्रेमपूर्ण है।
इसी तरह छोड़ देने को देखकर भी कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। प्रश्न यह है कि छोड़ने वाला कौन है? छोड़ तुम इसलिए भी सकते हो कि कलतक तुम्हारे हितों की पूर्ति होती थी, आज नहीं हो रहीㄧतुमने छोड़ दिया। छोड़ तुम इसलिए भी सकते हो क्योंकि कलतक तुम्हें साथी से, प्रेमी सेㄧजिसके साथ हो, उससे फायदा मिलता था; आज नहीं मिल रहा फायदा तो छोड़ दिया। और छोड़ने के पीछे दूसरा स्रोत भी हो सकता है। तो आचरण को लेकर, व्यवहार को लेकर, कोई नियम न बनाओ, न माँगो; पूछो ही मत कि बने रहें कि त्याग दें? धर्म आचरण की बात नहीं है; धर्म सही जगह पर पहुँचने की बात है, सही केंद्र से जीने की बात है।
आप सब लोग (सभी श्रोतागणों से) इस जगह पर पहुंचे हैं, हमारी बात-चीत हो रही है। आप कहाँ से आईं (किसी श्रोता से)…